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26 अप्रैल 2023

chanakya neiti- हिंदी काव्यानुवाद - डॉ ओ. पी. व्यास

हो कन्या कुरूप, कुल वाली, तो भी उसे अपना लीजे |
हो अति सुन्दर, कुल हो नीच, पर कभी नहींं उसको वरिए ||
रत्न, स्वर्ण, गंदगी कीचड मे, उसको आप उठा लो "चन्द्र"* |
विद्या, विद्वत्ता मिले अगर नीच से, करो उसे अवश्य गुरुवर ||
कहे चाणक्य गर चुनना तुमको नीच, सर्प, दो मे से एक |
तो फिर सर्प को ही चुन लीजे, यह ही चन्द्र है, परम विवेक ||
क्योकि सर्प तो एक बार ही, डसता है "चन्द्र" सुनिए |
मगर नीच से पग पग संकट, कब तक अपना सिर धुनिए ||

*चन्द्र गुप्त
{चाणक्य नीति .. संस्कृत से हिन्दी काव्य भावानुवाद
- डा.ओ.पी.व्यास , पोएट, 27~4~2023, गुरुवार}

 

14 दिस॰ 2019

वसुधैव कुटुम्बकम

वसुधैव कुटुम्बकम..
यह मेरा है, वह तेरा है,
यह सोचें छोटे दिल के, 
सारी वसुधा है, कुटुम्बवत 
उदार चरित रहें, हिल मिल के॥
संस्कृत से हिंदी काव्यानुवाद  ||

(478 ) ..डॉ. ओ.पी.व्यास 

1 नव॰ 2019

(477)हेलोवीन ..शंकर विवाह भाग 2 !! Shankar Vivah Part 2 !! Pt.Gurunarayan Bhardwaj !! ...

यह  बुन्देलखण्ड की स्टाइल में आत्यन्त रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है ।पश्चिमी देशों में जैंसे हेलोवीन  अक्टूबर माह में मनाया जाता है जिसमें बच्चे तरह तरह के स्वांग करते हैं वह  बाबा तुलसीदास जी के राम चरित मानस के बाल काण्ड के शिव वविवाह से काफ़ी साम्य रखता है   ..डॉ .ओ .पी .व्यास 

28 अक्तू॰ 2019

धन्वन्तरि प्रगटन उद्देश्य -.डॉ. ओ .पी .व्यास

 जब सन्मति से, सुर और असुर सभी ने, दधि की भांति, मथा सागर।
तब विष्णु रूप जग पालक भगवन धन्वन्तरि बन, प्रगट हुए ले अमृत गागर।।
सब की थी अभिलाषा जग में, अमर होंय सब सुर नागर।
रोग जाल जंजाल मुक्त जग होय, आयु संपूर्ण पाय यह जन सागर।।
धर्म, अर्थ और काम, मोक्ष, पुरुषार्थ चतुष्टय, प्राप्त करें सब हर प्राणी, जिसको आगर।।
जिससे लक्ष्य हो प्राप्त मानव जन्म का, क्यों जन्म लिया सबने आकर।।
सभी धन्य हो जांय जगतं में, सुंदर मानव तन पाकर।।
पूर्ण होय उद्देश्य जगत का, सो अमृत कलश दिया लाकर ।।
यह छोटी स बात, समझ लें, हो सद्बुद्धि सभी के पास ।
वरना एटम से विनाश को, नहीं कोई रोकेगा" व्यास"।।
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क्या नहीं जानते सारे जग में, सब ही हैं एक दूजे के बाप-..डॉ. ओ.पी .व्यास

बार बार एटम की धमकी, क्यों देते फ़िरते हैं आप ।
क्या नहीं जानते सारे जग में, सब ही हैं, एक दूजे के बाप।।
सारे जग में शांति रहे, इस हेतु बना, यह संयुक्त राष्ट्र का संघ ।
क्यों उन्मत्त नशे में डोलो, ज्यों पी ली हो सूरा या भंग।।
कयों लड़ते रहते हो व्यर्थ ही, क्यों करते रहते हुड़ दंग।
क्यों एक दूसरे को ठगते हो, क्यों करते रहते हो जंग।।
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24 अक्तू॰ 2019

धन्वन्तरि स्तुति संस्कृत (आविर्बभूव कलशं --) से हिंदी काव्यानुवाद ,

 धन्वन्तरि स्तुति संस्कृत से हिंदी काव्यानुवाद- डॉ.ओपी व्यास
प्रादुर्भूत हुए धन्वन्तरि ले पीयूष कलश कर में ।
रोग शोक से पीड़ित जन ने, स्तुति करी एक स्वर में।।
पूर्ण हुई अमृत अभिलाषा, अमर तत्व पाया सुर ने ।
ओष  धार आओषधियाँ आ गईं ,गाँव गाँव और घर घर में ।।
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धन्वन्तरि स्तुति ..मूल संस्कृत
आविर्बभूव कलशं दध्यदर्णवाद्य पीयूष पूर्ण ममरत्व कृते सुराणाम, 
रुग्जाल जीर्ण जनता जनितः प्रशंसउ भगवान धन्वंतरि स  भविकाय भूयात।-
अर्थ.. हिंदी में ..देव ,दानवों( सुर ,असुरों )ने अमृत की प्राप्ति हेतु समुद्र मंथन किया था ,तब भगवान विष्णु ने धन्वन्तरि के रूप में अमृत कलश ले कर प्रगट हुए ।.
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धन्वन्तरि स्तुति ..मूल संस्कृत में ..सन 1959 में जब मैं शासकीय आयुर्वेद महा विद्यालय लश्कर ग्वालियर मध्यप्रदेश का प्रथम वर्ष का छात्र था। विद्वान प्रोफ़ेसर महोदय श्रीमान शास्त्री जी ने हम सभी छात्रों को परामर्श दिया था कि सभी को यह धन्वन्तरि स्तुति याद कर लेनी चाहिए। तब से वह  स्मृति में है।

4 अक्तू॰ 2019

श्रद्धांजलि स्व. श्रीमान पुरुषोत्तम जी श्रीवास्तव - डॉ' ओ.पी.. व्यास

अश्रु पूर्ण श्रद्धांजलि-  स्वर्गीय श्रीमान पुरुषोत्तम श्रीवास्तव एक पडोसी, हित-चिंतक-ओर मित्र ।
                               जो- 21 .9. 2019  को 94 वर्ष की आयु में नहीं रहे।
भाग (  1  )
दुआओं को ले ले, दुआओं को ले ले |
दुआओं से झोली को, अपनी तू भर ले ||
ऐ कंगाल झोली को,अपनी तू भर ले |||
धन और दौलत नहीं काम आए |
                 ये तन भी ,एक दिन तो ,यहीं  छूट जाए ||
संग ,नेकियां और बदीयां चलेंगी ,  
उन्हीं की प्यारे तू, संभाल कर ले |

2 अक्तू॰ 2019

देश भले जाए पानी में तुमको क्या है नेताजी -.डॉ.ओ.पी.व्यास .

देश भले जाए पानी में, तुमको क्या ? है नेताजी - 
एक शिक्षा प्रद रचना 

[डॉ.ओ.पी.व्यास नई सड़क गुना म.प्र.]

देश भले जाए पानी में, तुमको क्या? है नेताजी |
 तुम तो बांधों के उद्घाटन, शिलान्यास करते जाओ|
ठेकेदारों और अफ़सरों की जेबों को भरते जाओ || 

1 अक्तू॰ 2019

बूढ़े और मोबाइल.. डॉ .ओ.पी .व्यास (एक चुटीली हास्य व्यंग्य रचना)

बूढ़े और मोबाइल?
 एक चुटीली हास्य, व्यंग्य रचना -डॉ,. ओ . पी .व्यास

पुर्व समय में हम प्रात: करते थे -
"प्रातः काल उठ कर, रघुनाथा| मात, पिता, गुरु नावहिं माथा ||" [राम चरित मानस]
और  आज
मोबाइल ने बढ़ा दीं, हम सब में हैं दूरी |
                                   इसीलिए सब कट गये, कट गई, दुनिया पूरी ||
पहले नानी कहानी, बच्चों से कहती थी।
                                नाना, नानी बच्चों के, सदा पास रहती थी ||
अब नानी की कहानी, कौन सुनाए हमको? 
                        कितनी थी मिठास किस्सों में कौन बताए हमको? ||
दादा के अनुभव की बातें,  और दादी जी के नुस्खे |
बताएगा बच्चों को सब दिमाग़ से खिसके ?
इसमें एक बड़ा कारण है, वह है एक मोबाइल |
सब का मुंह सूजा सूजा सा, गर्म और है बॉईल || [उबलता हुआ] 

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद