धन्वन्तरि स्तुति संस्कृत से हिंदी काव्यानुवाद- डॉ.ओपी व्यास
प्रादुर्भूत हुए धन्वन्तरि ले पीयूष कलश कर में ।
रोग शोक से पीड़ित जन ने, स्तुति करी एक स्वर में।।
पूर्ण हुई अमृत अभिलाषा, अमर तत्व पाया सुर ने ।
ओष धार आओषधियाँ आ गईं ,गाँव गाँव और घर घर में ।।
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धन्वन्तरि स्तुति ..मूल संस्कृत
आविर्बभूव कलशं दध्यदर्णवाद्य पीयूष पूर्ण ममरत्व कृते सुराणाम,
रुग्जाल जीर्ण जनता जनितः प्रशंसउ भगवान धन्वंतरि स भविकाय भूयात।-
अर्थ.. हिंदी में ..देव ,दानवों( सुर ,असुरों )ने अमृत की प्राप्ति हेतु समुद्र मंथन किया था ,तब भगवान विष्णु ने धन्वन्तरि के रूप में अमृत कलश ले कर प्रगट हुए ।.
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धन्वन्तरि स्तुति ..मूल संस्कृत में ..सन 1959 में जब मैं शासकीय आयुर्वेद महा विद्यालय लश्कर ग्वालियर मध्यप्रदेश का प्रथम वर्ष का छात्र था। विद्वान प्रोफ़ेसर महोदय श्रीमान शास्त्री जी ने हम सभी छात्रों को परामर्श दिया था कि सभी को यह धन्वन्तरि स्तुति याद कर लेनी चाहिए। तब से वह स्मृति में है।