[ 361 ] भूख से व्याकुल क्षुधा से आर्त हो |[ भर्तृहरि वैराग्य शतक श्लोक क्र .50 का काव्य भावानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास ...]
भूख से पीड़ित , क्षुधा से आर्त हो |
पर मांगने जाते वहां क्यों ?व्यर्थ को ||
अपने कुल वाले हों ,परिचित हों जहाँ |
पर स्वाभिमानी पन को क्यों ? हो त्यागते ||
चाहते यदि मांगना ही है तो फिर जाओ वहा|
उन पुण्य ग्रामों में,दिन रात यज्ञ होते हैं जहां |||
जहां श्वेत वस्त्रों से ढंके भिक्षा पात्र को |
घूम कर घर घर थोड़ी सी भिक्षा मात्र को ||
मिटाओ तुम भूख घर घर घूम कर |
जहाँ ब्राह्मण, शास्त्रज्ञ हवन से धूम कर ||
वे पवित्र वन ग्राम जो काले हुए |
जहाँ पर सब ने नियम पाले हुए ||
कर दिए काले उन पवित्र वन ग्राम को |
रात दिन होते हवन को, प्रातः श्याम को||
हें स्वाभिमानी तुम वहां पर जाइए |
क्षुधा को अपनी वहां जा मिटाइये ||
श्लोक क्र. 50 भर्तृहरि वैराग्य शतक काव्य भावानुवाद - डॉ.ओ.पी.व्यास