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स्वर्ण सुमेरु , रजत के हिम गिरि ,
सब कुछ हैं बेकार |
जिनके आश्रित वृक्ष , पेड़ हैं ,
वही , नीम , सेवार ||
धन्य धन्य मलयाचल तुम को ,
चन्दन बन गये वृक्ष हजार |
नीम , कुटज , कंकोल से कड़वे ,
बन चन्दन पाया उद्धार ||
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भर्तृहरि नीति शतक श्लोक क्र ..80 काव्यांनुवाद.........डॉ.ओ.पी.व्यास .......