[ 81 ] ........
धैर्य प्रशंषा
कार्य होय आरम्भ तो ,
मध्य ना छोड़ें धीर |
बिन अभीष्ट की प्राप्ति के ,
होते नहीं अधीर ||
जैसे मथा समुद्र जब ,
निकले रत्न महान |
नहीं हुए संतुष्ट देव गण ,
जारी रहा मथान ||
और भयंकर विष जब निकला ,
भय का नहीं निशान |
जब तक मंथन पूर्ण हुआ ना ,
आई नहीं थकान ||
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धैर्य प्रशंषा
कार्य होय आरम्भ तो ,
मध्य ना छोड़ें धीर |
बिन अभीष्ट की प्राप्ति के ,
होते नहीं अधीर ||
जैसे मथा समुद्र जब ,
निकले रत्न महान |
नहीं हुए संतुष्ट देव गण ,
जारी रहा मथान ||
और भयंकर विष जब निकला ,
भय का नहीं निशान |
जब तक मंथन पूर्ण हुआ ना ,
आई नहीं थकान ||
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