[ 135 ] { नोट ... चार धाम यात्रा १० वर्ष पूर्व बस से करने का सौभाग्य मिला था हरिद्वार से यमुनोत्री , गंगोत्री , केदारनाथ , बद्रीनाथ की थी संयोग से बस के ड्राइवर संस्कृत से एम.ए. थे गढ़वाली ब्राह्मण थे तथा बस में यात्री उ.प्र. के प्रयाग के थे जिनमें आगे की सीट पर एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण शिक्षक थे मेरे साथ मेरी धर्म पत्नी सौ 'कृष्णा व्यास तथा बहिन सुश्री ज्योति प्रभा थीं ,यह रचना भोपाल आकाश वाणी से प्रसारित हो चुकी है ...डॉ.ओ.पी.व्यास ]
चार धाम यात्रा [ डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र. ]
एक तरफ़ पर्वत की श्रेणी ,
एक तरफ़ है खाई |
क़दम क़दम पर यहाँ है , खतरा ,
संभल के चलना भाई ||
आसमान से बातें करतीं ,
पर्वत की यह श्रेणी |
गहरी खाई में गंगा माँ ,
ज्यों गौरा [ पार्वती जी ] की वेणी [ चोटी ] ||
सीढ़ी नुमा हैं खेत यहाँ के ,
टेढ़े मेढ़े पर्वत |
खेती जहां पहाड़ी करते ,
देखो उनकी हिम्मत ||
दो पर्वत के बीच देखिये ,
झांके तीसरा पर्वत |
चौथा कनखियो से देखे ,
मानो वह है शरमत ||
जिधर द्रष्टि डालें पहाड़ हैं,
नीचे हैं गंगाजी |
हरा भरा वन और उपवन है ,
पवन बह रही ताज़ी ||
सड़क कह रही सुन ले भैय्या ,
मैं पहाड़ की नागिन |
जल्दी करेगा औरत तेरी ,
रहना नहीं सुहागिन ||
देवदारु के वृक्ष खड़े हैं,
अन्ज्लिओं को बांधे |
मानो ये कोई ऋषि मुनि हैं ,
प्रभु साधन को साधे ||
और चीड़ के वृक्ष खड़े हैं ,
द्रश्य सुहाना देते |
मानो प्रक्रति ने सजा दिए हैं ,
काटे छांटे रेते ||
................ क्रमशः [ डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.]