भर्तृहरी [नीति शतक ]काव्य भावानुवाद
डॉ . ओ . पी . व्यास गुना म . प्र . भारत
विद्वद जन विद्या के मद से ग्रस्त ।
धनिक जनों से विद्वद हैं त्रस्त॥
और मूर्ख जन जिनकी बुद्धि अस्त ।
और मूर्ख जन जिनकी बुद्धि अस्त ।
कौन सुनेगा कवितायें [ सुभाषित] सब के सब ही व्यस्त॥