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1 मार्च 2012

डाड़ दाँत

डाड़ दाँत
 [कल डाड़ निकलवाई ]     
  डॉ.ओ.पी.व्यास  
धीरे धीरे बदल चला,सब चेहरे का रूप ।
कुछ थोड़े से रह गये, दांतों के स्तूप ।।
सूरज चला है अस्ताचल को खतम हो चली धूप।
वो पानीदार चेहरा कहाँ? अब सूख चला है कूप ।।
बोले श्री  पेंढारकर है चेहरे में चेंज ।
पहले जैंसी चमक की, अब दिखती नहीं है रेंज।।
 मगर    राख की ढेरी में, अभी जल रही आग ।
मन फिर   भी नहीं मानता ,हैं तृष्णा के राग ।।
परमात्मा के साथ अब, होनीचाहिए लगन ।
जिसके नूर से प्रकाशित,यह जीवन की अगन।।
 डॉ. ओ.पी. व्यास 

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद