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2 मार्च 2012

भर्तृहरी वैराग्य शतक का काव्य एवं भावानुवाद पर लोक सुधारें हम कैंसे ?

भर्तृहरी वैराग्य शतक का काव्य एवं भावानुवाद पर लोक सुधारें हम कैंसे ? डॉ ओ .पी . व्यास
डॉ . ओ . पी. व्यास 
नई सड़क गुना म. प्र .भारत  

प्राचीन उज्जयनी के राजा भ्रत्हरी  (भरथरी) जिन्होंने वैराग्य के बाद नीति शतक  एवं कई ग्रंथो की रचना की उनके वैराग्य शतक के भाव का सक्षिप्त रूप इस रचना में देखने मिलता हे।यह सामान्य जन को आसानी से  समझ आ जाता हे। 



पर लोक सुधारें हम कैंसे ?


परलोक सुधारें हम कैसे ? इस लोक के काम अधूरे हैं|
जो सपने हम ने देखे थे,वे अभी हुए ना पूरे हैं|
कभी नोन,तो कभी तेल नहीं,कभी तेल है,तो है नहीं लकड़ी|
कभी दवा नहीं, कभी दुआ नहीं,बच्चों ने जिद कोई पकड़ी ||

अभी एक मकान बनाया है अभी मंजिल और बनाना है|
फ्रिज, टी.वी.,सोफा सब साधन, उस में तो हमें जुटाना हैं ||
स्कूटर तो ले आये हैं, पर कार का नम्बर लगा हुआ| 
कुछ पैसा अभी तो आना है, कुछ मेरे साथ है, दगा हुआ ||
इस और-और, इस हाय-हाय का, आदि दिखे ना,अंत||
इस में तो वे भी,भटक गये,जो थे दिखने में बड़े संत|| 

हम से तो जानवर अच्छे हैं, जिनका ना कोई फांटा है |
ना उन का कोई धंधा है, जिसमें कि नफ़ा या घाटा है||
सोने के लिए धरती बिस्तर, वे मस्त, उसी पर सोते हैं|
हम कुछ को पा, कुछ को फिरते,ना मिलता कुछ,तो,रोते हैं|
वह आयु! कि जिस में ताक़त थी,संसार सिन्धु! तर जाने की| 
वह पूरी ही,तो बीत गयी, रही केवल कमाने की |
अब आया है, लो अंत समय,यमराज! हमें अब घूरे हैं |. 
पर लोक सुधारें हम कैंसे? ,इस लोक के,काम अधूरे हैं 
जो सपने ,हम ने देखे थे,वे अभी हुए ना पूरे हैं।।

डॉ . ओ . पी. व्यास 

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद