321 /16 जो तुम को छोड़ेगा एक दिन , उसे क्यों ना आज ही तुम छोड़ो |
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास
जो तुम को छोड़ेगा एक दिन ,
उसे क्यों ना आज ही तुम छोड़ो ?|
पकड़ेगा प्रभु ही हाथ तेरा ,
क्यों ना उससे नाता जोड़ो ? ||
वे विषय के सुख जिनको भोगा ,
नहीं साथ सदा रहने वाले |
इसलिए उन्हें पहिले छोड़ो ,
जीवन के हट जायं जाले ||
वह महान सुख और महाशांति ,
मिल जाए हमें बैठे ठाले |
अन्यथा वे जब छोड़ेंगे ,
दुःख के दिन होंगे तब काले ||
मनस्ताप बहुत बढ़ जाएगा ,
कोई ना होंगे रख वाले |
पकड़ प्रभु का हाथ आज ,
जो पाना सो प्रभु से पा ले ||
प्रभु बुला रहा है आतुर हो ,
उस तरफ़ ही जीवन रथ मोड़ो |
जो तुमको छोड़ेगा एक दिन ,
उसे क्यों ना आज ही तुम छोड़ो ?||
जिनने पहले ही विषय त्यागे ,
उनको अभाव का दुःख ही नहीं |
जो नहीं त्यागते विषय व्याल [ सर्प ] ,
उनके जीवन में सुख ही नहीं ||
.....................................................................................................
जो बुद्धिमान धन ,दौलत में |
स्त्री ,पुरुषों में, शोहरत में ||
मोहित जो कभी नहीं होते |
वे मरते समय में नहीं रोते ||
आसक्त रोते पर मरते वक्त |
नहीं बोल सकें क्योंकि जीभ सख्त ||
इससे हिल पाती ना जबान |
ना बता सकें वे मन का ध्यान ||
सुख से यदि तुम मरना चाहो|
विषयों से अभी से हट जाओ ||
यदि गये शरण प्रभु कष्ट नहीं |
बस एक बात स्पष्ट यही ||
केवल इसका है यही सार |
विषय भोग सब हैं निस्सार ||
इन्हें छोड़ के पाओ सुख अनन्त |
बनो वेदना मनस्ताप रहित संत ||16 ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद डॉ ओ.पी.व्यास
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भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास
जो तुम को छोड़ेगा एक दिन ,
उसे क्यों ना आज ही तुम छोड़ो ?|
पकड़ेगा प्रभु ही हाथ तेरा ,
क्यों ना उससे नाता जोड़ो ? ||
वे विषय के सुख जिनको भोगा ,
नहीं साथ सदा रहने वाले |
इसलिए उन्हें पहिले छोड़ो ,
जीवन के हट जायं जाले ||
वह महान सुख और महाशांति ,
मिल जाए हमें बैठे ठाले |
अन्यथा वे जब छोड़ेंगे ,
दुःख के दिन होंगे तब काले ||
मनस्ताप बहुत बढ़ जाएगा ,
कोई ना होंगे रख वाले |
पकड़ प्रभु का हाथ आज ,
जो पाना सो प्रभु से पा ले ||
प्रभु बुला रहा है आतुर हो ,
उस तरफ़ ही जीवन रथ मोड़ो |
जो तुमको छोड़ेगा एक दिन ,
उसे क्यों ना आज ही तुम छोड़ो ?||
जिनने पहले ही विषय त्यागे ,
उनको अभाव का दुःख ही नहीं |
जो नहीं त्यागते विषय व्याल [ सर्प ] ,
उनके जीवन में सुख ही नहीं ||
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जो बुद्धिमान धन ,दौलत में |
स्त्री ,पुरुषों में, शोहरत में ||
मोहित जो कभी नहीं होते |
वे मरते समय में नहीं रोते ||
आसक्त रोते पर मरते वक्त |
नहीं बोल सकें क्योंकि जीभ सख्त ||
इससे हिल पाती ना जबान |
ना बता सकें वे मन का ध्यान ||
सुख से यदि तुम मरना चाहो|
विषयों से अभी से हट जाओ ||
यदि गये शरण प्रभु कष्ट नहीं |
बस एक बात स्पष्ट यही ||
केवल इसका है यही सार |
विषय भोग सब हैं निस्सार ||
इन्हें छोड़ के पाओ सुख अनन्त |
बनो वेदना मनस्ताप रहित संत ||16 ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद डॉ ओ.पी.व्यास
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