32 0 / 15 /3 .....संतोषी सदा सुखी होते |...
तुम देख विपत्ति क्यों रोते |
संतोषी सदा सुखी होते ||
देखो तो चन्दा सूरज को ,ज्योतिष्कों में जो हैं सर्व श्रेष्ठ |
जो सब से अधिक प्रभावी हैं ,गृह और हैं जिनसे बहुत नष्ट ||
दिन रात घूमते बेचारे ,खाते रहते हैं इधर उधर चक्कर |
परिणाम में फल उन्हें कुछ भी नहीं , मेहनत दोंनो करते डट कर ||
दोंनों पर पराधीन बेड़ी दोंनों को नहीं है आज़ादी |
आराम एक क्षण का भी नहीं ,दोंनों की कितनी बरबादी ||
फिर छोटे छोटे हम प्राणी , क्यों कर हैं होंसला हम खोते |
हम देख विपत्ति क्यों ? रोते ,संतोषी सदा सुखी होते ||
तुम देख विपत्ति क्यों रोते ? |
संतोषी सदा सुखी होते || 15 /3
23 / 9 / 19 96
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास .
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तुम देख विपत्ति क्यों रोते |
संतोषी सदा सुखी होते ||
देखो तो चन्दा सूरज को ,ज्योतिष्कों में जो हैं सर्व श्रेष्ठ |
जो सब से अधिक प्रभावी हैं ,गृह और हैं जिनसे बहुत नष्ट ||
दिन रात घूमते बेचारे ,खाते रहते हैं इधर उधर चक्कर |
परिणाम में फल उन्हें कुछ भी नहीं , मेहनत दोंनो करते डट कर ||
दोंनों पर पराधीन बेड़ी दोंनों को नहीं है आज़ादी |
आराम एक क्षण का भी नहीं ,दोंनों की कितनी बरबादी ||
फिर छोटे छोटे हम प्राणी , क्यों कर हैं होंसला हम खोते |
हम देख विपत्ति क्यों ? रोते ,संतोषी सदा सुखी होते ||
तुम देख विपत्ति क्यों रोते ? |
संतोषी सदा सुखी होते || 15 /3
23 / 9 / 19 96
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास .
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