हिंदी कविता
डॉ . ओ. पी .व्यास
जीवन एक ग्लास कांच का
पकड़ लो इस को ,जम कर,कस कर,
ले के सहारा ,अंगुली पांच का ।।
सावधानी यदि हट जाएगी ,
दुर्घटना फिर घट जाएगी ,
छूट जायेगा ,टूट जायेगा ,
कसकेगा टुकड़ा ,किरांच का ।।
हम को चालू जी से कहना ,
जादा दिवस ना जग में रहना ,
एक दिन चारा खुट जायेगा ,
जग से नाता टुट जायेगा ,
चित्र गुप्त देखेंगे खाते ,
क्या जीवन भर रहे हो खाते ,
पड़ा रहेगा तन का ढ़ांच का ।।
जीवन एक ग्लास कांच का ।
डॉ . ओ. पी. व्यास गुना म. प्र.भारत
१।३।२०१२ ।।