ग्राम ..
.डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.
अपना है और अपनों का ही धाम है ये ग्राम |
सच पूछिए तो ग्राम की पहिचान है ये ग्राम ||
सम्बन्ध जहां टूटे नहीं आज तक बन के ,
लेते सब प्रभु का नाम लोग रोज़ सुबह श्याम ||
जिसमें सदा स्नेह की है गंध बस रही ,
एक कुल वधु के पुण्य सी, रंगत है यह ललाम ||
सुलझे हुए जीवन का मोरों सा नृत्य है ,
निर्भय हैं मृग कुलांचें ,उलझन का नहीं काम ||
बरगद अरु आम तरु मानो ध्यानस्थ योगी हों ,
लगता है प्रभु का यह ही तो एक धाम ||
ज़रा ध्यान दीजिएगा ग्राम शब्द पर ,
साक्षात राम ही अंतर्निहित रखता है शब्द ग्राम ||
ईश्वर ने बांटे सुख दुःख ,ग्रामों को मिले सुख ,
शहरों ने पाए शोक दुःख , दिखते वहा. तमाम ||
ऐ "व्यास " चलें लौट अब फिर से ग्राम को ,
हमको बुला रहा हमारा वंशी वाला श्याम ||
डॉ.ओ.पी .व्यास
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