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18 मई 2017

ग्राम ...कविता ...डॉ.ओ.पी.व्यास ...एक सुंदर हिंदी रचना [बुधवार 8 मार्च 1978 ]

               ग्राम ..

.डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.

अपना   है  और अपनों का ही धाम है ये ग्राम |
सच पूछिए   तो ग्राम की पहिचान है ये ग्राम ||
सम्बन्ध    जहां    टूटे   नहीं आज तक बन के ,
लेते सब प्रभु का नाम  लोग रोज़ सुबह श्याम ||
जिसमें   सदा   स्नेह   की   है   गंध    बस रही ,
एक कुल वधु के   पुण्य सी,    रंगत है यह ललाम ||
सुलझे   हुए   जीवन  का   मोरों   सा नृत्य है ,
     
निर्भय हैं मृग कुलांचें ,उलझन का नहीं काम ||
बरगद अरु आम तरु मानो ध्यानस्थ योगी हों ,
लगता है   प्रभु   का यह   ही   तो  एक धाम ||
ज़रा     ध्यान     दीजिएगा   ग्राम   शब्द    पर ,
साक्षात राम ही अंतर्निहित  रखता है शब्द ग्राम ||
ईश्वर ने बांटे सुख दुःख ,ग्रामों को मिले सुख ,
शहरों ने पाए शोक दुःख , दिखते वहा. तमाम ||
ऐ "व्यास " चलें लौट अब फिर से ग्राम को ,
हमको बुला रहा हमारा वंशी वाला श्याम ||
               
                   डॉ.ओ.पी .व्यास
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद