गज़ल
ग्राम ...कविता ... डॉ.ओ.पी.व्यास [ गुरुवार 9 मार्च 1978] ..प्रकाशित रचना वीर अभिमन्यु स्वतंत्रता दिवस विशेषांक ]
ग्रामों के लोग अभावों में जी रहे |
अभागे अभावों से त्रस्त ही रहे ||
फटे ,छने कपड़ों सी ,तार तार ज़िन्दगी ,
कितने श्रम से, देखो इसे सीं रहे ||
इनके बच्चों को छाछ भी नसीब नहीं ,
इनका दूध सारा ये शहरों के पी रहे ||
भावों से पूर्ण पर ये अभाव ग्रस्त ,
देखो जी ज़िन्दगी अभागों सी रहे ||
भारत की आत्मा, बसती है ग्रामों में ;
बापू ता ज़िन्दगी , कहते यही रहे ||
शोषण से मुक्त इन्हें ,कर सके ना आज तक ,
आज भी , कर्जों के, वही , खाते बही रहे ||
{डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.}
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ग्राम ...कविता ... डॉ.ओ.पी.व्यास [ गुरुवार 9 मार्च 1978] ..प्रकाशित रचना वीर अभिमन्यु स्वतंत्रता दिवस विशेषांक ]
ग्रामों के लोग अभावों में जी रहे |
अभागे अभावों से त्रस्त ही रहे ||
फटे ,छने कपड़ों सी ,तार तार ज़िन्दगी ,
कितने श्रम से, देखो इसे सीं रहे ||
इनके बच्चों को छाछ भी नसीब नहीं ,
इनका दूध सारा ये शहरों के पी रहे ||
भावों से पूर्ण पर ये अभाव ग्रस्त ,
देखो जी ज़िन्दगी अभागों सी रहे ||
भारत की आत्मा, बसती है ग्रामों में ;
बापू ता ज़िन्दगी , कहते यही रहे ||
शोषण से मुक्त इन्हें ,कर सके ना आज तक ,
आज भी , कर्जों के, वही , खाते बही रहे ||
{डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.}
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