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18 मई 2017

गज़ल ...ग्राम ...कविता ....डॉ.ओ.पी.व्यास ..ग्रामों के लोग अभावों में जी रहे | फटे छने कपड़ों सी तार तार ज़िन्दगी ,कितने श्रम से देखो सीं रहे ||

  गज़ल
ग्राम ...कविता ...    डॉ.ओ.पी.व्यास     [  गुरुवार 9 मार्च  1978] ..प्रकाशित रचना वीर अभिमन्यु स्वतंत्रता दिवस विशेषांक ]
ग्रामों के लोग अभावों में जी रहे |
अभागे अभावों से त्रस्त ही रहे ||
        फटे ,छने कपड़ों सी ,तार तार ज़िन्दगी ,
        कितने   श्रम   से,  देखो   इसे  सीं  रहे ||

इनके बच्चों को छाछ भी नसीब नहीं ,
इनका   दूध सारा ये शहरों के पी रहे ||
        भावों से पूर्ण   पर ये अभाव ग्रस्त ,
        देखो जी ज़िन्दगी अभागों सी रहे ||
भारत की आत्मा, बसती है ग्रामों में ;
बापू  ता   ज़िन्दगी ,  कहते यही रहे ||
        शोषण से मुक्त इन्हें ,कर सके ना आज तक ,
        आज भी , कर्जों   के, वही , खाते  बही   रहे ||
                                   {डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.}
                                         
                   
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद