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11 अग॰ 2014

शिव ताण्डव [महा पण्डित रावण कृत ]...भावानुवाद .डॉ.ओ.पी. व्यास

शिव तांडव [महा पण्डित रावण कृत का [भावानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.७/11/ १९९८ शनिवार ]
[ १ ]
जटा रूप, अटवी [वन] से, गंगा निकल कर। 
धोती है ग्रीवा को, शिव जी के चल कर॥ 
पावन करें, धारा, शिव ग्रीवा मल कर। 
हुई ग्रीवा शोभित, भुजंग माल डल कर॥ 
बजे डमरू, डम, डम, डम, डम, डमअड़म। 
करें, शिव जी, ताण्डव, नृत्यम, प्रचण्डम॥ 
करें, सर्व मंगल, शिवम, शंकरम, मम। 
ध्याते रहें शिव, शिवम, सर्वदा हम॥
[२]
मस्तक कड़ाहा, जटा हैं लताएँ। 
शोभित जो गंगा, तरंगों से पाएं॥
धग धग धगदधग, ललाटाग्नि जलती।
किशोर चन्द्रमा से, शिव छवि निखरती॥ 
शेखर चरण रति हो प्रति क्षण मम।
बजे डमरू डम, डम, डम डम डमअडम॥
[३]
गिरिराज नंदिनी माँ, पार्वती जी के भूषण ,
प्रकाशित हैं जिनसे सारी दिशाएं।
भक्तों के मन जिनसे आनंद पायें।
कृपा द्रष्टि से कठिन आपत्ति जाएँ॥
उन शिव दिगम्बर में मन अपना लायें। 
सदा सर्वदा शिव, शिवम हम जो गायें॥
डम डम डमअडम, डमरू शिव बजाएं। 
उन ही भोले शंकर में मन हम रमायें ॥ 
[ ४ ]
जटाओं में शिव जी के, भुजंगों के फण हैं .
फणों में जो मणिओं के, चमक रहे कण हैं॥
पिंगल प्रभा भूषित, हैं दिशाये अंगनाएँ॥
अनुलेप कुमकुम का, मानो वे लगायें॥
धारें शिव मत्त हाथी, के चमड़े की चादर॥ 
उन भूत भर्तरि शिव जी,को मेरा आदर॥
डमडम डमअडम,डमरू शिव बजाएं॥
उन भोले शंकर में,मन हम रमायें॥
[ ५ ]
शिव जी के चरण पाद, कुसुमों से धूसर ॥
इन्द्रादिक सुरों ने ,चढ़ाए जो उन पर ॥ 
भुजंग राजों की मालाओं, से बंधीं हैं जटायें॥ 
चिर काल जिन से हम, सम्पत्ति पायें॥
उन चन्द्र शेखर में, मन को रमायें॥ 
सदा शिव शिवम, शंकरं को ही गायें॥
[ ६ ]
किया काम को नष्ट, ललाटाग्नि से जिन
नम: इन्द्र करते, मनाता हूँ शिव तिन॥ 
सुधाकर कला वाले, शोभित मुकुट के ,
उन्हें छोड़ मन ये नहीं कहीं भटके॥ 
विशाल उन्नत मस्तक, जिन का जटिल है ,
उन्हीं शिव , महाशिव में, मन ये अटल है॥
बजे डमरू डमडम, डमडम डमअडम
करें शिव जी ताण्डव नृत्यम प्रचण्डम॥
करें सर्व मंगल, शिवम शंकरम मम

भजें निशि ,दिवस हम, शिवम शंकरम हम ॥
[शिव ताण्डव ...महा पण्डित रावण ]
[भावानुवाद डॉ. ओ.पी. व्यास गुना म.प्र. ]
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद