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22 अग॰ 2017

[ 281] चाह रहा हूँ आसमान से तोड़ के लाऊँ तारे | ऐंसा भाग्य कहां से लाऊँ पर बतलाओ प्यारे ||हास्य व्यंग्य कविता ..डॉ.ओ.पी.व्यास


हास्य व्यंग्य  
चाह रहा हूँ ,आसमान से तोड़ के लाऊँ तारे |
ऐंसा भाग्य कहां से लाऊँ , पर बतलाओ प्यारे ||
[ 1 ]
चाह रहा हूँ , आसमान में एक महल बनबाना |
लेकिन वहां चाहता कोई कारीगर ना जाना ||
जब भी मुझको ऐंसा कारीगर मिल जाएगा |
ताजमहल से भी सुंदर महल मेरा बन जाएगा ||
पैसा कोड़ी बहुत लगेगा , मन है यही विचारे |
चाह रहा हूँ आसमान से तोड़ के लाऊँ तारे |
ऐंसा भाग्य कहां से लाऊँ पर बतलाओ प्यारे ||
[ २ ] 
आज जमाना क्यू का आया जहां जाओ है लाइन |
नमक , तेल ,घी , शक्कर सब में मेरे आगे नाइन ||
कभी ना कभी नम्बर मेरा भी आएगा ,
सभी काम पूरे होएँगे , बढिया , सुपर और फाइन ||
हो जाएंगे पूरे फिर तो सारे ख़्वाब हमारे |
चाह रहा हूँ आसमान से तोड़ के लाऊँ तारे |
ऐंसा भाग्य कहां से लाऊँ पर बतलाओ प्यारे ||
[ 3 ]
कहते हैं कि भाग्य बनाने वाले हैं सब तारे |
जिसका देते साथ सितारे ,उसके वारे न्यारे ||
इसी लिए मैं चाह रहा हूं तोड़ के लाऊँ सारे |
ऐंसा भाग्य कहां से लाऊँ ,पर बतलाओ प्यारे |
चाह रहा हूँ आसमान से तोड़ के लाऊँ तारे |
ऐंसा भाग्य कहां से लाऊँ पर बतलाओ प्यारे ||

हास्य व्यंग कविता ...डॉ.ओ.पी.व्यास 

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद