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1 अप्रैल 2014

विद्वद जन विद्या के मद से ग्रस्त ...डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.

विद्वद जन विद्या के मद से ग्रस्त । 

भर्तृहरि शतक [वैराग्य ] काव्य भावानुवाद ...[डॉ. ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.]


विद्वद जन विद्या के मद से ग्रस्त। 
धनिक जनों से विद्वद जन हैं, त्रस्त॥ 
और मूर्ख जन, बुद्धि जिनकी अस्त। 
कौन सुनेगा अब कविताएँ सबके सब ही व्यस्त॥


मूल श्लोक एवं अर्थ 
बोढ्धारो मत्सरग्रस्ता: प्रभव: स्मय दूषिता: । 
अबोधोअपह्रता श्चान्ये  जीर्णमंगे सुभाषितम॥२] 


[विद्वानों के हृदय में ईर्ष्या व्याप्त है, प्रभु अर्थात शक्तिशाली एवं धनवान अहंकार में डूबे हुए हैं और जो सामान्य लोग हैं ,वे अज्ञानता से भरे हुए हैं। यही कारण है कि कविओं के हृदय में उठने वाली बहुमूल्य उक्तियाँ निरर्थक हो जाती हैं ,क्यों कि इन्हें कोई समझ नहीं पाता।] 

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद