[ 377 ]
..[64 ] .
.रे मन चंचलता के वश ही ,
पाताल कभी तू जाता है |
और कभी दिशाओं में घूमे ,
गगन पार भी हो आता है ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
रे मन चंचलता के वश ही ,
पाताल कभी तू जाता है |
और कभी दिशाओं में घूमे ,
गगन पार भी हो आता है ||
पर विमल आत्मा ब्रह्म रूप ,
का मन चिन्तन नहीं लाता है |
जो सत सुख दाता , ब्रह्म एक ,
उसको ना समझ क्यों पाता है ||
श्लोक क्र. [ 64 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
...................................................................................................................................................................
..[64 ] .
.रे मन चंचलता के वश ही ,
पाताल कभी तू जाता है |
और कभी दिशाओं में घूमे ,
गगन पार भी हो आता है ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
रे मन चंचलता के वश ही ,
पाताल कभी तू जाता है |
और कभी दिशाओं में घूमे ,
गगन पार भी हो आता है ||
पर विमल आत्मा ब्रह्म रूप ,
का मन चिन्तन नहीं लाता है |
जो सत सुख दाता , ब्रह्म एक ,
उसको ना समझ क्यों पाता है ||
श्लोक क्र. [ 64 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
...................................................................................................................................................................