32 3 / 18 / ...भिक्षाशनम यदपि ..
भिक्षा को मांग रूखा सूखा जो मिल जाए वह खाता है |
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद ...
डॉ.ओ.पी.व्यास
भिक्षा को मांग रूखा सूखा ,
जो मिल जाए सो खाता है |
अति कठिनाई से एक बार ,
भोजन ही जिसे मिल पाता है ||
सोने के लिए जिसको केवल ,
भू शैय्या ही मिल पाती है |
निज देह मात्र जिसका परिजन ,
वह ही परिजन और नाती है ||
सौ सौ कपड़ों की चिंदी से ,
बनी हुई जिसकी कथरी |
हाय विषय वह त्यागे नहीं ,
की विषयों ने कैसी गत री ||
श्लोक क्र. 18
भर्तृहरि वैराग्य शतक काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
17 / 10 / 19 96
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भिक्षा को मांग रूखा सूखा जो मिल जाए वह खाता है |
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद ...
डॉ.ओ.पी.व्यास
भिक्षा को मांग रूखा सूखा ,
जो मिल जाए सो खाता है |
अति कठिनाई से एक बार ,
भोजन ही जिसे मिल पाता है ||
सोने के लिए जिसको केवल ,
भू शैय्या ही मिल पाती है |
निज देह मात्र जिसका परिजन ,
वह ही परिजन और नाती है ||
सौ सौ कपड़ों की चिंदी से ,
बनी हुई जिसकी कथरी |
हाय विषय वह त्यागे नहीं ,
की विषयों ने कैसी गत री ||
श्लोक क्र. 18
भर्तृहरि वैराग्य शतक काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
17 / 10 / 19 96
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