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3 जन॰ 2017

[ 106 ] अप्रिय बोलने में निर्धन जो , प्रिय , वक्ताओं में धनवान | स्वयं की पत्नी से जो अति ख़ुश ,पर निंदा पर दें ना ध्यान ||

भर्तृहरि नीति शतक श्लोक क्र.[ 106 ] काव्यानुवाद ....डॉ.ओ.पी.व्यास


अप्रिय बोलने में निर्धन जो,  प्रिय, वक्ताओं में, धनवान|
स्वयं की पत्नी से जो अति ख़ुश, पर निंदा पर दें ना ध्यान||
पर पीडन से दूर रहें जो, पुरुषों में शोभा वाले
कभी कभी पड़ते हैं दिखाई, कान्ति और आभा वाले|| [ 106]

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद