भर्तृहरि नीति शतक श्लोक क्र.[ 106 ] काव्यानुवाद ....डॉ.ओ.पी.व्यास
अप्रिय बोलने में निर्धन जो, प्रिय,
वक्ताओं में, धनवान|
स्वयं की पत्नी से जो अति ख़ुश, पर
निंदा पर दें ना ध्यान||
पर पीडन से दूर रहें जो, पुरुषों में
शोभा वाले|
कभी कभी पड़ते हैं दिखाई, कान्ति और आभा
वाले|| [ 106]
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