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4 जन॰ 2017

[ 107 ] जिसके तन में प्रिय शील रहे , वह अखिल विश्व को अति प्रिय है

भर्तृहरि नीति शतक श्लोक क्र.[ 107 ] काव्यानुवाद ...

जिसके तन में प्रिय शील रहेवह अखिल विश्व को अति प्रिय है|
वह महा भयंकर अग्नि उसे, शीतल जल जैसी निश्चय है||
उसे महासिंधु है क्षुद्र नदी, और है सुमेरु सादा पत्थर|
हैं सिंह उसे मृग के जैसे, पुष्पों की माला हैं विषधर|| 
औरों के लिए जो विष वर्षा, वह उसके लिए सुधामय है |
जिसके तन में प्रिय शील रहे, वह अखिल विश्व को अति प्रिय है|| [ 107 ]
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद