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30 मार्च 2013

कूड़ा कचरा व्यर्थ सोच की ,होली हमें जलाना है ।

होली

व्यर्थ मिटाओ, व्यर्थ जलाओ, होली हमें सिखाती है ।

नव निर्माण करो जीवन में , राह हमें दिखलाती है ॥

कूड़ा, कचरा, व्यर्थ सोच की होली हमें जलाना है ।

नया जमाना, नयी राह, और मंज़िल , नयी बनाना है ॥

नकली रंग , रोगन, नकली से , जीवन ना रंगीन बने ।

असली रंग , उमंग, जीवन में, नव प्रकाश के सीन भरें ॥

एक बनें हम ,नेक बनें हम , सत युग फिर से लाना है ।

कूड़ा ,कचरा, व्यर्थ सोच की , होली हमें जलाना है ॥[ 1]

हम में ही हैं , राम, कृष्ण सब , हम में, देव, देवीयाँ हैं ।

हम ही परम पिता के सुत हैं , हम छोटी सी बेबियाँ हैं ॥

हम को सद गुण विकसित करके नए तराने गाना हैं ॥

कूड़ा कचरा व्यर्थ सोच की ,होली हमें जलाना है ॥








भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद