भर्तृहरी शतक [वैराग्य] भावानुवाद
चिंतन से उसके लाभ क्या जो वस्तु , मिथ्या रूप है ।
अंत में यह भुवन भो, उस ब्रह्म में ही लीन हो ।
आश्रित हें सारे ब्रह्म पर , चाहे कृपण आधीन हो॥
........
वह भरा हुआ घर देखो तो ,उस घर में रहते थे अनेक ।
कहाँ गए वे सब के सब ,अब मात्र बचा है शेष एक ॥
वह काल पुरुष, काली स्त्री, मिल साथ विश्व चौसर खेलें ।
रात, दिवस, दो पाँसों से, प्राणों की गोटी को ले लें ॥
......
हम भी एक वृक्ष, नदी तट के, जो बालू में है खड़ा हुआ ।
जा रहे दिनों दिन, मृत्यु निकट,देखेंगे लोग कभी पड़ा हुआ ॥ ....................