भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
श्लोक क्र . 8
काव्यानुवाद ..3 तरह किया है प्रथम ..वलिओं से मुख आक्रान्त हुआ| डॉ.ओ.पी.व्यास
[ 1 ]
वलिओं से मुख आक्रान्त हुआ |
तन वृद्ध हुआ और क्लांत हुआ ||
शिर पलित हुआ और हुआ श्वेत ,
यह शिथिल गात्र अशांत हुआ |
पर तृष्णा दिन दिन तरुण हुई ,
मन दिशा भ्रमित और भ्रांत हुआ ||
[ २ ]
चेहरे पे झुर्रियां आई हैं, बुढापे की निशानी लाई हैं||
हो गये केश सब पलित श्वेत, शिर की ये फ़सल मुरझाई है|
ढीले ढीले हैं शिथिल अंग, सब ने ही मुसीबत ढाई है||
हर तरफ़ बुढापा आया है, पर तृष्णा पर तरुणाई है ||
[ 3 ]...
झुर्रिओं से है, भर गया ये मुख |
केशों ने किया, श्वेतता का है रुख ||
पर तृष्णा, तरुणाई उन्मुख||
मूल श्लोक ..
क्र.[8/14] ...
वलिभिर्मुखमाक्रान्तं पलितैरंकितं शिरः |
गात्राणि शिथिलायन्ते तृष्णऐका तरुणायते ||
भावार्थ ...मुख मण्डल झुर्रिओं से आक्रान्त हो गया है सिर श्वेत केशों से चिन्हित परिपूर्ण हो गया है शरीर शिथिल होता जा रहा है परन्तु एक मात्र तृष्णा ही ऐंसी है जो तरुण अर्थात जवान होती जा रही है |
डॉ.ओ.पी.व्यास