339 / 31 /...रे मन क्यों ? करता रहता है , तू विचित्र से यत्न |
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
रे मन क्यों ?करता रहता , तू विचित्र से यत्न |
चित्त पराये हो जाएँ , ,कोई भांति प्रसन्न ||
इससे दिन दिन बढ़ता जाता , तेरे अंदर क्लेश |
इसी क्लेश के पंक में फंस कर , त्यागें परम उद्देश्य ||
अति प्रसन्नता को प्राणी , जब अंतर में धारे |
चिंता मणि के दुर्लभ गुण को , प्राप्त करेगा सारे ||
होगी कौन ? नहीं अभिलाषा ,की फिर तेरे पूर्ति |
तब जीवन में आ जाएगी , एक नई स्फूर्ति
[ 31 ]
डॉ.ओ.पी.व्यास
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भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
रे मन क्यों ?करता रहता , तू विचित्र से यत्न |
चित्त पराये हो जाएँ , ,कोई भांति प्रसन्न ||
इससे दिन दिन बढ़ता जाता , तेरे अंदर क्लेश |
इसी क्लेश के पंक में फंस कर , त्यागें परम उद्देश्य ||
अति प्रसन्नता को प्राणी , जब अंतर में धारे |
चिंता मणि के दुर्लभ गुण को , प्राप्त करेगा सारे ||
होगी कौन ? नहीं अभिलाषा ,की फिर तेरे पूर्ति |
तब जीवन में आ जाएगी , एक नई स्फूर्ति
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डॉ.ओ.पी.व्यास
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