338 / 30 /..जब सम्मान नष्ट हो जाए , क्षय हो जाए धन का |...
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
हिंदी काव्य भावानुवाद ..
डॉ. ओ.पी.व्यास ..
जब सम्मान नष्ट हो जाए , क्षय हो जाए धन का |
अतिथि विमुख हो जाएँ सारे , नाश हो बन्धु जन का ||
परिजन चले जाएँ जब सारे , नाश होय यौवन का |
बुद्धिमान तब आश्रय ले ले ,हिमगिरि के आंगन का ||
गुफा पवित्र हो गंगा जी से ,सु फल होय जीवन का |
अमृत पान करें वहां निशि दिन , सुरसरि के जल कण का ||
[ 30 ]
डॉ .ओ.पी.व्यास
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भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
हिंदी काव्य भावानुवाद ..
डॉ. ओ.पी.व्यास ..
जब सम्मान नष्ट हो जाए , क्षय हो जाए धन का |
अतिथि विमुख हो जाएँ सारे , नाश हो बन्धु जन का ||
परिजन चले जाएँ जब सारे , नाश होय यौवन का |
बुद्धिमान तब आश्रय ले ले ,हिमगिरि के आंगन का ||
गुफा पवित्र हो गंगा जी से ,सु फल होय जीवन का |
अमृत पान करें वहां निशि दिन , सुरसरि के जल कण का ||
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डॉ .ओ.पी.व्यास
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