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.हें राजन यदि धन के कारण तुम प्रभुता सम्पन्न |..
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
हिंदी काव्य भावानुवाद ..
हें राजन ,, यदि धन के कारण .तुम प्रभुता सम्पन्न |
वाणी पर प्रभुता है हमारी ,हम भी कहां ? विपन्न ||
युद्ध कला में हें राजन , यदि आप बहुत हैं शूर |
दर्प वादिओं के घमण्ड को ,हम पल में कर द्रं चूर ||
हें राजन यदि तेरे सेवक , बहुत अधिक धनवान |
सेवक बहुत हमारे भी हैं, शास्त्र के आस्था वान ||
बुद्धि मलिनता हरने जिनको ,शास्त्र श्रवण की इच्छा |
इतनी समता , हममें तुममें ,हम पर तुम्हें ?ना श्रध्दा ? ||
यदि श्रद्धा नहीं तुमको हम पर ,हम हों क्यों? आस्था वान |
इसी लिये हें राजन , हम जाते ,छोड़ तेरा स्थान ||
[29 ]
डॉ.ओ.पी.व्यास
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.हें राजन यदि धन के कारण तुम प्रभुता सम्पन्न |..
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
हिंदी काव्य भावानुवाद ..
हें राजन ,, यदि धन के कारण .तुम प्रभुता सम्पन्न |
वाणी पर प्रभुता है हमारी ,हम भी कहां ? विपन्न ||
युद्ध कला में हें राजन , यदि आप बहुत हैं शूर |
दर्प वादिओं के घमण्ड को ,हम पल में कर द्रं चूर ||
हें राजन यदि तेरे सेवक , बहुत अधिक धनवान |
सेवक बहुत हमारे भी हैं, शास्त्र के आस्था वान ||
बुद्धि मलिनता हरने जिनको ,शास्त्र श्रवण की इच्छा |
इतनी समता , हममें तुममें ,हम पर तुम्हें ?ना श्रध्दा ? ||
यदि श्रद्धा नहीं तुमको हम पर ,हम हों क्यों? आस्था वान |
इसी लिये हें राजन , हम जाते ,छोड़ तेरा स्थान ||
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डॉ.ओ.पी.व्यास
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