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संसार में सब को ही है भय | प्रभु भक्त सदा रहता निर्भय ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
संसार में सब को ही है भय | प्रभु भक्त सदा रहते निर्भय ||
भोगी जो व्यस्त हैं भोगों में | उनको डर रहता रोगों में ||
हो जांय कहीं ना कभी हीन | इस भय में रहते हैं कुलीन ||
धन वानों को है राज्य का भय | श्रेष्ठों को दीनता का संशय ||
बलवानों को शत्रु से डर | कंपे रूप बुढ़ापे से थर थर ||
डरते विवाद से शास्त्री सब | दुष्टों से गुणी बचे हैं कब ? ||
काया को है यमराज का भय | हुआ कभी नहीं कोई निर्भय ||
सब ओर विश्व में भय है व्याप्त | वे ही निर्भय जिन्हें शिव चरण प्राप्त ||
श्लोक क्र. [ 32 ]
डॉ.ओ.पी.व्यास
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संसार में सब को ही है भय | प्रभु भक्त सदा रहता निर्भय ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
संसार में सब को ही है भय | प्रभु भक्त सदा रहते निर्भय ||
भोगी जो व्यस्त हैं भोगों में | उनको डर रहता रोगों में ||
हो जांय कहीं ना कभी हीन | इस भय में रहते हैं कुलीन ||
धन वानों को है राज्य का भय | श्रेष्ठों को दीनता का संशय ||
बलवानों को शत्रु से डर | कंपे रूप बुढ़ापे से थर थर ||
डरते विवाद से शास्त्री सब | दुष्टों से गुणी बचे हैं कब ? ||
काया को है यमराज का भय | हुआ कभी नहीं कोई निर्भय ||
श्लोक क्र. [ 32 ]
डॉ.ओ.पी.व्यास
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