भर्तृहरि नीति शतक श्लोक क्र.[ 110 ]
काव्यानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास
जो भी होंय प्रतिज्ञा पालें, त्यागें ना सत धारी|
चाहे प्राण भले ही जाएँ, रहते हैं व्रत धारी||
क्योंकि
प्रतिज्ञा उनको होती, माता वत ही पवित्र|
लज्जा पड़े उठाना उनको, ऐसा नहीं चरित्र||
तेजस्वी हैं पुरुष श्रेष्ठ वे, सदा रहें स्वाधीन|
मन ,कर्म और वचन से होते, कभी नहीं वे हीन||
ऐंसे धीर पुरुष का जग में, होता है गुण गान|
कहें "भर्तृहरि" सुनो "व्यास", तुम ऐंसे बनो महान|| [ 110 ]
विशेष ..
.धन्य भाग्य जो पूर्ण हुआ, नीति शतक है आज|
श्री "भर्तृहरि महाराज" ने, रखी "व्यास" की लाज||
"दि 26 / 8 / 1996 श्रावण का सोमवार"|
पूर्ण हुआ नीति शतक जो नीति का सार||
धन्यवाद तुम्हें "कल्पना" जो दिखला दी राह|
लज्जा पड़े उठाना उनको, ऐसा नहीं चरित्र||
तेजस्वी हैं पुरुष श्रेष्ठ वे, सदा रहें स्वाधीन|
मन ,कर्म और वचन से होते, कभी नहीं वे हीन||
ऐंसे धीर पुरुष का जग में, होता है गुण गान|
कहें "भर्तृहरि" सुनो "व्यास", तुम ऐंसे बनो महान|| [ 110 ]
विशेष ..
.धन्य भाग्य जो पूर्ण हुआ, नीति शतक है आज|
श्री "भर्तृहरि महाराज" ने, रखी "व्यास" की लाज||
"दि 26 / 8 / 1996 श्रावण का सोमवार"|
पूर्ण हुआ नीति शतक जो नीति का सार||
धन्यवाद तुम्हें "कल्पना" जो दिखला दी राह|
वाह
तुम्हारी कल्पना, नीति शतक है वाह||
दि.21/ 8/ 1996 श्रावण सोमवार
इति शुभम्
भर्तृहरि नीति शतक
काव्यानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास
दि.21/ 8/ 1996 श्रावण सोमवार
इति शुभम्
भर्तृहरि नीति शतक
काव्यानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास
समाप्त
...............................................................................................................................................
..........................................................................