भर्तृहरि
नीति शतक श्लोक क्र.[ 109 ]
काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास
काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास
पुरुष
होंय गम्भीर, कभी भी, खोते नहीं हैं
धीरज|
चाहे कष्ट कोई भी होवे, करते नहीं हैं अचरज||
जैंसे अग्नि की ज्वाला को, कर दें भले ही नीची|
मगर धीर पुरुष के जैंसी, जाती हर दम ऊंची|| [ 109 ]
चाहे कष्ट कोई भी होवे, करते नहीं हैं अचरज||
जैंसे अग्नि की ज्वाला को, कर दें भले ही नीची|
मगर धीर पुरुष के जैंसी, जाती हर दम ऊंची|| [ 109 ]