भर्तृहरि नीति शतक श्लोक क्र, 105 काव्यानुवाद ,,,डॉ,ओ,पी,व्यास
105
मालती के पुष्प जैसे, पुरुष होते हैं मनस्वी|
दो ही गतियाँ पांय वे, हों दो ही पदवी||
या तो श्रेष्ठ मुकुट वत होते, सर्व लोक में|
या तप से तन त्याग, जाएँ, वे स्वर्ग लोक में||
मालती के पुष्प जैसे, पुरुष होते हैं मनस्वी|
दो ही गतियाँ पांय वे, हों दो ही पदवी||
या तो श्रेष्ठ मुकुट वत होते, सर्व लोक में|
या तप से तन त्याग, जाएँ, वे स्वर्ग लोक में||
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