लाभ
कौन से जगत में आये आपके हाथ|
यदि
तुमने काटा समय नहीं गुणवान के साथ||
और
असुखकर दुःख तुम हो, क्या क्या ढोते आये?
मूर्ख
प्राज्ञेतरों संग, जो, इतने दिवस बिताये||
रोज
रोज ही व्यर्थ की हानि रहे उठाते|
मूल्य
वान कर समय नष्ट, अब आंसू बैठ बहाते||
क्यों
नहीं प्राप्त निपुणता करते, धर्म तत्व को सीख|
व्यर्थ
ही याचक बन कर मांगो, पूर्ण विश्व से भीख||
उठो,
बनो अब शूर जीत कर, अपनी इन्द्रिय काम|
कौन तुम्हारी
प्रियतमा हो, पतिव्रता हो वाम||
असली
धन क्या? है इस जग में, बस केवल
एक विद्या|
कहीं
भटकना कभी पड़े ना, इससे बड़ा है सुख क्या? [ 104 ]
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