324 / 19 /..जिन्हें कहते हो तुम स्वर्ण कलश ,मात्र हैं वे माँस ग्रन्थि |...
भर्तृहरि वैराग्य शतक श्लोक क्र 19 ..काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
जिन्हें कहते हो तुम स्वर्ण कलश ,
मात्र हैं वे माँस ग्रन्थि |
जिस मुख को उपमा चन्द्र की है ,
वह कफ खकार से है गन्दी ||
जिन जंघाओं पर मोहित हो ,
हाथी की सूंड मानते हो |
वे प्रति पल गन्दी रहती हैं ,
क्या इतना नहीं जानते हो ||
वे गंदे और निंदनीय अंग ,
क्यों कर ना करें उनकी निंदा ? |
कविओं ने बढ़ा चढ़ा बोला,
आश्चर्य युक्त है यह फंदा ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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भर्तृहरि वैराग्य शतक श्लोक क्र 19 ..काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
जिन्हें कहते हो तुम स्वर्ण कलश ,
मात्र हैं वे माँस ग्रन्थि |
जिस मुख को उपमा चन्द्र की है ,
वह कफ खकार से है गन्दी ||
जिन जंघाओं पर मोहित हो ,
हाथी की सूंड मानते हो |
वे प्रति पल गन्दी रहती हैं ,
क्या इतना नहीं जानते हो ||
वे गंदे और निंदनीय अंग ,
क्यों कर ना करें उनकी निंदा ? |
कविओं ने बढ़ा चढ़ा बोला,
आश्चर्य युक्त है यह फंदा ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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