[ 378 ]
श्लोक क्र. [ 65 ]
..वही रात पहिले के जैंसी ,
वैसा ही फिर दिन आया |
जान रहा यह हर एक प्राणी ,
फिर भी जान नहीं पाया ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
..वही रात पहिले के जैंसी ,
वैंसा ही फिर दिन आया |
जान रहा यह हर एक प्राणी ,
फिर भी जान नहीं पाया ||
वह ही वह ,व्यापार कर रहा ,
भाग्य में जैंसा लिखवाया |
सभी जगत ,धिक्कार रहा है ,
लाज नहीं फिर भी लाया ||
श्लोक क्र.[ 65 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी. व्यास
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श्लोक क्र. [ 65 ]
..वही रात पहिले के जैंसी ,
वैसा ही फिर दिन आया |
जान रहा यह हर एक प्राणी ,
फिर भी जान नहीं पाया ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
..वही रात पहिले के जैंसी ,
वैंसा ही फिर दिन आया |
जान रहा यह हर एक प्राणी ,
फिर भी जान नहीं पाया ||
वह ही वह ,व्यापार कर रहा ,
भाग्य में जैंसा लिखवाया |
सभी जगत ,धिक्कार रहा है ,
लाज नहीं फिर भी लाया ||
श्लोक क्र.[ 65 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी. व्यास
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