[ 379 ]
श्लोक क्र. [ 66 ].
. ज्यों कोई ऐश्वर्य शाली ,
सो रहे महाराज ।
सो रहे हैं शान्त चित्त ,
वैंसे ही यह मुनि राज ।।
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
ज्यों कोई ऐश्वर्य शाली
,सो रहे महाराज |
सो रहे हैं शांत चित्त ,
वैसे ही यह मुनि राज ||
रम्य शैय्या भूमि की ,
तकिया विपुल कर का ।
गगन का मण्डप सुहाना ,
वायु का पंखा ।।
चंद्रमा का दीप उज्वल ,
अलौकिक सुंदर ।
संग विरक्ति स्त्री है ,
महारानी से बढ़ कर ।।
सारे जग के राज्य जिनके,
चरणों में निछावर ।
कौन महाराजा बड़ा ,
इन मुनि से बढ़ कर ।।
श्लोक क्र 66
[ 379 ] ..
श्लोक क्र.[ 66 ] .
.ज्यों कोई ऐश्वर्य शाली , सो रहे महाराज |
सो रहे हैं शांत चित्त ,वैसे ही यह मुनि राज ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ ओ पी व्यास
ज्यों कोई ऐश्वर्य शाली , सो रहे महाराज |
सो रहे हैं शांत चित्त , वैसे ही यह मुनि राज ||
रम्य शैय्या , भूमि ,इन की तकिया विपुल कर का |
गगन का मण्डप सुशोभित , वायु का पंखा ||
चन्द्रमा का दीप उज्वल ,अलौकिक ,सुंदर |
संग विरक्ति स्त्री है , महारानी से चढ़ कर ||
राज्य सारे जिनके चरणों में निछावर |
कौन राजा है बड़ा ,इन मुनि राज से बढ़ कर ||
श्लोक क्र.[ 66 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
श्लोक क्र. [ 66 ].
. ज्यों कोई ऐश्वर्य शाली ,
सो रहे महाराज ।
सो रहे हैं शान्त चित्त ,
वैंसे ही यह मुनि राज ।।
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
ज्यों कोई ऐश्वर्य शाली
,सो रहे महाराज |
सो रहे हैं शांत चित्त ,
वैसे ही यह मुनि राज ||
रम्य शैय्या भूमि की ,
तकिया विपुल कर का ।
गगन का मण्डप सुहाना ,
वायु का पंखा ।।
चंद्रमा का दीप उज्वल ,
अलौकिक सुंदर ।
संग विरक्ति स्त्री है ,
महारानी से बढ़ कर ।।
सारे जग के राज्य जिनके,
चरणों में निछावर ।
कौन महाराजा बड़ा ,
इन मुनि से बढ़ कर ।।
श्लोक क्र 66
[ 379 ] ..
श्लोक क्र.[ 66 ] .
.ज्यों कोई ऐश्वर्य शाली , सो रहे महाराज |
सो रहे हैं शांत चित्त ,वैसे ही यह मुनि राज ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ ओ पी व्यास
ज्यों कोई ऐश्वर्य शाली , सो रहे महाराज |
सो रहे हैं शांत चित्त , वैसे ही यह मुनि राज ||
रम्य शैय्या , भूमि ,इन की तकिया विपुल कर का |
गगन का मण्डप सुशोभित , वायु का पंखा ||
चन्द्रमा का दीप उज्वल ,अलौकिक ,सुंदर |
संग विरक्ति स्त्री है , महारानी से चढ़ कर ||
राज्य सारे जिनके चरणों में निछावर |
कौन राजा है बड़ा ,इन मुनि राज से बढ़ कर ||
श्लोक क्र.[ 66 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास