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श्लोक क्र [ 67 ].
. साम्राज्य त्रिभुवन का जिससे ,
फीका फीका लगता है ।
जिस ब्रह्म महाशासन समक्ष ,
वश नहीं किसी का चलता है ।।
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ ओ पी व्यास
साम्राज्य त्रिभुवन का जिससे,
फीका फीका लगता है ।
जिस ब्रह्म महा शासन समक्ष ,
वश नहीं किसी का चलता है ।।
रे चित्त , प्राप्त हो वही ब्रह्म ,
ऐसा प्रयास करने लग जा ।
भोजन और वस्त्र , मान रूपी ,
भोगों में ही मन नहीं लगा ।।
उस ब्रह्म के जैसा कौन भोग ,
जो शाश्वत नित्य प्रकाशित है ।
त्रिभुवन का राज्य फीका उससे ,
वह स्वाद ही परम प्रमाणित है ।।
क्र 67
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावनुवाद
डॉ ओ पी व्यास
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श्लोक क्र [ 67 ].
. साम्राज्य त्रिभुवन का जिससे ,
फीका फीका लगता है ।
जिस ब्रह्म महाशासन समक्ष ,
वश नहीं किसी का चलता है ।।
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ ओ पी व्यास
साम्राज्य त्रिभुवन का जिससे,
फीका फीका लगता है ।
जिस ब्रह्म महा शासन समक्ष ,
वश नहीं किसी का चलता है ।।
रे चित्त , प्राप्त हो वही ब्रह्म ,
ऐसा प्रयास करने लग जा ।
भोजन और वस्त्र , मान रूपी ,
भोगों में ही मन नहीं लगा ।।
उस ब्रह्म के जैसा कौन भोग ,
जो शाश्वत नित्य प्रकाशित है ।
त्रिभुवन का राज्य फीका उससे ,
वह स्वाद ही परम प्रमाणित है ।।
क्र 67
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावनुवाद
डॉ ओ पी व्यास
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