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1 अक्तू॰ 2019

बूढ़े और मोबाइल.. डॉ .ओ.पी .व्यास (एक चुटीली हास्य व्यंग्य रचना)

बूढ़े और मोबाइल?
 एक चुटीली हास्य, व्यंग्य रचना -डॉ,. ओ . पी .व्यास

पुर्व समय में हम प्रात: करते थे -
"प्रातः काल उठ कर, रघुनाथा| मात, पिता, गुरु नावहिं माथा ||" [राम चरित मानस]
और  आज
मोबाइल ने बढ़ा दीं, हम सब में हैं दूरी |
                                   इसीलिए सब कट गये, कट गई, दुनिया पूरी ||
पहले नानी कहानी, बच्चों से कहती थी।
                                नाना, नानी बच्चों के, सदा पास रहती थी ||
अब नानी की कहानी, कौन सुनाए हमको? 
                        कितनी थी मिठास किस्सों में कौन बताए हमको? ||
दादा के अनुभव की बातें,  और दादी जी के नुस्खे |
बताएगा बच्चों को सब दिमाग़ से खिसके ?
इसमें एक बड़ा कारण है, वह है एक मोबाइल |
सब का मुंह सूजा सूजा सा, गर्म और है बॉईल || [उबलता हुआ] 
सभी आज लगते गुस्से में, कहीं शान्ति ना दिखती |
                अमन ,चैन और सुख की बातें सब किस्सों में रहतीं ||
जैंसा इसका नाम मोबाइल,  मुख को रखता बॉईल |
    सभी उबलते से ,दिखते हैं नहीं कहीं स्माइल ||
इसीलिए है प्रार्थना, दृष्टी अपनी बदलो |
         मोबाइल को सीमित कर के, इन बूढों की सुध लो ||
वरना वह दिन दूर नहीं ,होंगे वृद्धाश्रम  भी एक म्यूजियम  |
 जहाँ उसी तरह जाएंगे हम ,जैंसे स्वीमिंग और जिम ||
सारे बूढ़े, वृध्दाश्रम में, ही हमें दिखेंगे |
बूढ़े देखने को, नई पीढ़ी ,वृद्धाश्रम घूमेंगे ||
नहीं किसी पर, वक़्त आज कल, सभी आज कमवक़्त |
छोटी है पर बात "व्यास  कवि " आज कह रहे सख्त||
माना सब पर ,भौतिक साधन ,कहीं है  कोई, कमी ना?
आज नहीं तो कल, सब को ही  पड़े  परिणाम भुगतना ||
                                                                                                                              डॉ.ओ..पी.व्यास 
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद