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5 जुल॰ 2019

( 468) शिव महिम्नः स्तोत्र- हिंदी काव्यानुवाद - डॉ. ओ,.पी. व्यास


( 468 )शिव महिम्नः स्तोत्र – हिंदी काव्यानुवाद -  द्वारा ...डॉ.ओ.पी .व्यास
महिम्नः पारन्ते परम विदुषांम-----  
1 -1 ॥ प्रथम हिंदी काव्यानुवाद)
तव महिमा का नहीं पार, अन्त, शिव, शिव, शिव, शिव दिग्दिगंत।।
नहीं पार पाएं ब्रह्मादि संत, फिर कैंसेसमझें पुष्पदन्त ॥1
यह आकाश अनन्त है उड़तीं चिड़िया जितनी शक्ति॥
उसी भांति से हें प्रभु जी हम भी करते तेरी भक्ति॥
॥1-2॥ ( द्वितीय )
हे शिव- आपकी बड़ी इतनी, महिमा, कोई जान पाया ना, जिसकी है गरिमा॥

ब्रह्मादि भी संत, आपको नहीं जानें,  अगर उनकी मानें, तो मेरी भी मानें॥ 
श्लोक क्रमांक 2   
वाणी मन से भी परे, हे नाथ! महिमा आपकी ।
वेद श्रुतियाँ चकित चित जानें ना गरिमा आपकी।।
कौन? से हैं विषय और हैं कौन? से गुण आपके ,
जानते हैं नहीं प्रभु जीक्या? है उपमा आपकी।।
दिव्य और चैतन्य लेकिन, रूप गुण जो आपके,
उस भोली सूरत पै भोलेमन रमा है आपकी।।2॥.
श्लोक क्र.(3) .
.सुर, गुरु ,ब्रह्मा की स्तुतियाँ, मधुर, परम ,अमृत वाणी ।
क्या? विस्मित कर सकीं देवकिसने ? तेरी महिमा जानी।।
कथन गुणों का तेरा करके, वाणी प्रभु ,पवित्र करूं ।
हे त्रिपुरारी ! हे शिव शंकर चित्त में तेरा चित्र धरूँ॥3
 स्तोत्र  (4)
सृष्टि स्थिति और लय वालाअति अद्भुत, प्रभु रूप अनूप।
त्रिगुणात्मक ऐश्वर्य युक्त अति, एक दूजे से भिन्न स्वरूप।।
मूढ़ बुद्धि जन, बुरा या अच्छा, जो चाहें मर्जी  बोलें ।
समझ ना पाते  तुमको भोले, निज बुद्धि में वे डोलें।।4॥
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शिव महिम्नःश्लोक क्र .26
हे प्रभो ! हो सूर्य तुम, हो चन्द्रमा और वायु भी।।
अग्नि,जल भी आप हो, आकाश, पृथ्वी आआप ही।।
हो आप ही क्षेत्रज्ञ,आत्मा, शास्त्र वर्णित, मूर्तियां।
विद्वान, परिणत बुद्धि के,करते हैं इस विधि,पूर्तियाँ।।
वह वस्तु जिसमें आप नहिं, है कौनसी संसार में।
आप ही देते दिखाई, पूर्ण जग व्यापार में।।
कुछ नहीं है विश्व मेँ, जो आप से प्रभु भिन्न हो।
आप में ही जग समाया , आप जग अभिन्न हो।।26॥
श्लोक क्र .(27
ओम बना है ‘’ से, जो शिव आपका ही है रूप।
तीन वेद ,तीनों कालों में , व्यापक शिव ही ओम, अनूप।K
तीन लोक, तीनों देवों में, करे आपका प्रतिपादन।
जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति परे वह, आपका ही शिव अभिवादन।।
निर्विकार, तुरीय रूप शिव अपरिच्छिन्न, समस्त है।
ध्वनि रूप में, प्रणव, ओम से, लक्ष्य उसी का व्यस्त है।।27।।
(28 ) शिव महिम्नः स्तोत्र
बारम्बार प्रणाम सदाशिव, बारम्बार प्रणाम है।।
वेद शास्त्र यह कथन कह रहे, आठ आपके नाम हैं।।
भव, शर्व, रुद्र और पशुपति, उग्र, महेश्वर, भीम, महान।
आठों नाम, विभिन्न गुणों के, करें आपका ही गुण गान।।
भव जो है संसार का स्रष्टा, शर्व नाम करे शांति युक्त।
रुद्र रुलाता है दुष्टों को, पशु पति करे जीव को मुक्त।।
उग्र भयंकर संहारक है, सह महान महेश्वर है।
भीम, ईशान सब जग का शासक, हर स्थिति को तत्पर है।।
परमाराध्य,परम प्रिय, हे शिव! हम जांय आपके धाम हैं।
बारम्बार प्रणाम सदाशिव, मन, क्रम ,वचन, प्रणाम है।
वेद, शास्त्र यह कथन कह रहे, आठ  आपके नाम हैं॥28॥
श्लोक क्र.(29 ) [1]..शिव महिम्नः स्तोत्र ..
प्रियदव हे एकांत निवासी, नमस्कार है। नमो नमः ।
अंतर आत्मा वासी शिव को, अति समीप को नमो नमः।।
स्मरहर! है कामान्तक! अति सूक्ष्म आपको। नमो नमः।
महिष्ठाय शिव! अति महान! निराकार को नमो नमः।।
वर्षिष्ठाय! अति वृद्ध! नयन त्रय! त्रिलोचन! शिव, नमो नमः।
यविष्ठाय! अति युवा! महा शिव, तरुणाकार, को नमो नमः।।
सर्वस्मै, सर्वात्म रूप, जगदाधार को नमो नमः।।29॥
कारण, कार्य, सर्व रूप, शिव, सर्वाधार को नमो नमः।।
शिव महिम्नः स्तोत्र 30)..
रजो गुणी, ब्रह्मा स्वरूप, उत्पत्ति के कर्त्ता, नमो नमः।
जन सुख कर्त्ता, सत गुण विष्णु, पालन कर्त्ता, नमो नमः।।
रुद्र रूप, तम गुण प्रधान, शिव, संहार के कर्त्ता, नमो नमः॥
तीनों गुण से परे, जो निर्गुण, मोक्ष के कर्त्ता, नमो नमः।।
चेतन, शुद्ध,जो बिना अविद्या, कल्याण के कर्त्ता नमो नमः।।
अनन्त, अनन्त हैं, नमो नमः, हे शिव भर्त्ता नमो नमः ।।30
श्लोक क्र.(31)..
हे अभीष्ट, वर दाता, शिव जी, गुण सीमा से, आप परे।
रहित काल के परिच्छेद से, आपकी महिमा पूर्ण हरे।।
और कहां यह चित्त है मेरा, जहां अविद्या, क्लेश भरे।
पुष्प हार स्तोत्र रूप यह, लाया पर मन, बहुत डरे।
पर आप के श्री चरणों की भक्ति ही, मन में है उत्साह करे।
स्वल्प ज्ञान से युक्त, योग्य नहिं,चकित चित्त, तुमको सुमिरे ।।(31)
श्लोक क्र.(33 -1 प्रथम ).
असुर, देव, मुनिओं से पूजित ,जिनके भाल चन्द्रमा है ।
जिनके गुण माला वत ग्रन्थित (गुम्फित ),निर्गुण शिव की महिमा है ।।
यक्ष राज श्री पुष्प दन्त ने, यह स्तोत्र रचा सुंदर।L
बना शिखरिणी छंदों से यह, हों प्रसन्न भोले शंकर। (33- 1)
देवासुर, मुनि, अधिपति जिनका, ध्यान सदा करते निसिदिन।
गुण अनन्त पर रूप है निर्गुण, उन शिव का यह पद वन्दन।।
चन्द्र मौलि भगवन शंकर का, अति रुचिकर, यह शिव महिमन (महिम्नः )।
पुष्प दन्त गन्धर्व राज कृत, अति सुंदर शिव अभिनन्दन।। 33-2॥ (द्वितीय)
इस पवित्र शिव के स्तोत्र को,शुद्ध चित्त से जो भी जन।
पाठ करें भक्ति पूर्वक, परमेश्वर का शिव महिमन (महिम्नः )।।
स्मृति में रहते हैं धूर्जटि महादेव, जिनके प्रति दिन।।
वे निश्चय शिव लोक में पूजित, ज्यों पूजित हों शिव के गण (रुद्र के गण )।
यहां भी वे नश्चित पा लेते यश, पुत्र ,आयु और धन।
निश्चित दोंनों लोक सहज ही, उन भक्तों के जाते बन ॥(34 )
शिव महिम्नः स्तोत्र हिंदी श्लोक क्र.(35 ). का काव्यानुवाद
गुरु की सीमा लांघ सके, वह तत्व नहीं अन्यत्र कहीं ।
कल्याण कर सके जो जग में, सो अघोर सा मन्त्र नहीं॥
नहीं देवता कोई जग में, जो महेश से बढ़कर हो।
ना ही कोई स्तोत्र जगत में, शिव महिम्नः से चढ़ कर हो॥35॥
 ((469 -35)




[1] (नोट ..यह अनुवाद प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो के तरीक़े से किया है।।
जैंसे एक शब्द फ़ारसी एक शब्द हिंदी, उसी तरह एक शब्द सँस्कृत एक शब्द हिंदी है। जैसे ख़ालक वारी सरजन हार, वाहिद एक, बदा करतार, बेया बरादर, बैठ रे भाई, बेया मादर, बैठ री माई।..डॉ. ओ.पी.व्यास)
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महेशान्नापरो देवो महिम्नो नापरा स्तुतिः।
अघोरान्नापरो मन्त्रो नास्ति तत्त्वं गुरोः परम्।। ३५।।   
भावार्थ: शिव से श्रेष्ठ कोइ देव नहीं, शिवमहिम्न स्तोत्र से श्रेष्ठ कोइ स्तोत्र नहीं है, भगवान शंकर के नाम से अधिक महिमावान कोई मंत्र नहीं है और ना ही गुरु से बढकर कोई पूजनीय तत्व।
.**** डॉ. ओ. पी .व्यास ****

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद