भर्तृहरि वैराग्य शतक ...[काव्य भावानुवाद]
[विशेष ..मेरे इस अनुवाद को स्वर्गीय रमेश जी नागर गुना ने आकाशवाणी शिवपुरी पर गा कर सज बाज से शायद प्रस्तुत किया था। ] मूल श्लोक और अर्थ ---
[ डॉ. ओ.पी. व्यास गुना म. प्र.]
गीत [भजन ]हर हर महादेव कई नाम जिनके।
चन्द्र कला है जटाओं में उनके॥
जले काम ऐंसे जलें जैसे तिनके।
मोह तम हटा देते योगी के मनके॥
उर में बसें शिव दीपक वे बन के।
करें वे सदा शिव कल्याण जन के॥
[चूडोत्तंसित चारूचन्द्रकलिका चन्चचिखा भास्वरो,
लीला दग्धविलोल कामशलभ: श्रेयो दशाग्रे स्फुरन।
अन्त स्फुर्दपार्मोहतिमिर प्रागभारमुच्चरयम, श्वेत|
स्दमनी योगिनां विजयते ग्यानप्रदीपो हर |१]
[मैं मस्तक पर चन्द्रमा रुपी धवल किरणों से युक्त आभूषण को धारण करने वाले ,अपनी साधारण लीला से असाधारण शक्तिशाली काम देव को अपनी विवेक रुपी अग्नि से जलाकर भस्म कर देने वाले , भक्तों के लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने वाले , अज्ञानता के अंधकार को दूर करने वाले ,ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने वाले योगिओं के ह्रदय में ज्ञान का दीपक बन कर विराजने वाले भगवान शंकर को प्रणाम करता हूँ /]