भर्तृहरि शतक ...नीति शतक ...
काव्यानुवाद ...
डॉ. ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.
29 / 7 / 1996
श्लोक क्र....44 ...[ 2 ]
कृशता [ कमजोरी ] ...
कमजोरी कृशता भी है ,
सोन्दर्य , बढाती |
मणि जब जाए तराशी ,
तब ही चमक दिखाती ||
विजयी वीर पुरुष ,
तब ही तो आदर पाते |
जब युद्धों में जाते हैं ,
निज रक्त बहाते ||
मद वाला ,गजराज ,
शरद ऋतु की यह सरिता |
कला युक्त शशि ,
रति क्रिया मर्दिता ||
जिस राजा का पूण्य कार्य में ,
होता , व्यय धन |
जय ,जय उसकी होती ,
भले वह होवे निर्धन ||
शोभित होते यह सब ,
दुर्बलता के कारण |
मुग्ध सभी उन पर .
करते कृशता जो धारण ||
इसीलिए कमज़ोरी को भी ,
कम मत जानो |
कृशता है वरदान तुल्य ,
इसे भी उर से मानो ||
[ श्लोक क्र . 44 ...[ २ ] ]
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