[ 403 ] .
.श्लोक क्र.[87 ] ..
.अरे मनुष्यों , सारे जग के ,
भोग सभी क्षण भंगुर हैं |
यही भोग तो , सारे जग के ,
जन्म मरण के चक्कर हैं ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक .
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
अरे मनुष्यों , सारे जग के ,
भोग सभी क्षण भंगुर हैं |
यही भोग तो , सारे जग के ,
जन्म मरण के चक्कर हैं ||
जान बूझ कर इन्हीं भोग को ,
क्यों करते हो व्यर्थ प्रयास |
क्यों नहीं शीघ्र काटते ,
ऐंसे आशा , तृष्णाओं के पाश ||
श्लोक क्र . [ 87 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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.श्लोक क्र.[87 ] ..
.अरे मनुष्यों , सारे जग के ,
भोग सभी क्षण भंगुर हैं |
यही भोग तो , सारे जग के ,
जन्म मरण के चक्कर हैं ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक .
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
अरे मनुष्यों , सारे जग के ,
भोग सभी क्षण भंगुर हैं |
यही भोग तो , सारे जग के ,
जन्म मरण के चक्कर हैं ||
जान बूझ कर इन्हीं भोग को ,
क्यों करते हो व्यर्थ प्रयास |
क्यों नहीं शीघ्र काटते ,
ऐंसे आशा , तृष्णाओं के पाश ||
श्लोक क्र . [ 87 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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