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18 मार्च 2018

[ 404 ] .... श्लोक क्र. ..[ 88 ] ..वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||.. डॉ.ओ.पी.व्यास

[ 404 ] ..श्लोक क्र. [ 88 ] ..
वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||..डॉ.ओ.पी.व्यास
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||
जो गिरि की कन्दराओं में रहते | ध्यान परम ज्योति का करते ||
जिनकी गोद में बैठ पक्षी गण | पीते उनके आनन्द अश्रु कण ||
किन्तु   आयु   यह   पूर्ण हमारी | भवन मनोरथ बनाती  हारी ||
वहां   मनोरथ   वापी   तट   पर  | आयु  क्षीण होती है घट कर ||
उसी   उद्यान   मनोरथ   विचरें , करते   रहते   भोग   विलास |
उसी    कल्पना   लोक   विचरते  , होते  प्रेम   क्रीड़ा   के   दास ||
क्यों  नहीं  करते भक्ति अनन्य | हो   जाते फिर हम सब धन्य ||
पर   जो   करते   भक्ति     अनन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||
वे     हैं     धन्य , वे   हैं   धन्य |   कौन   भला   उन जैंसा अन्य ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ. ओ.पी.व्यास

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद