[ 404 ] ..श्लोक क्र. [ 88 ] ..
वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||..डॉ.ओ.पी.व्यास
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||
जो गिरि की कन्दराओं में रहते | ध्यान परम ज्योति का करते ||
जिनकी गोद में बैठ पक्षी गण | पीते उनके आनन्द अश्रु कण ||
किन्तु आयु यह पूर्ण हमारी | भवन मनोरथ बनाती हारी ||
वहां मनोरथ वापी तट पर | आयु क्षीण होती है घट कर ||
उसी उद्यान मनोरथ विचरें , करते रहते भोग विलास |
उसी कल्पना लोक विचरते , होते प्रेम क्रीड़ा के दास ||
क्यों नहीं करते भक्ति अनन्य | हो जाते फिर हम सब धन्य ||
पर जो करते भक्ति अनन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||
वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ. ओ.पी.व्यास
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वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||..डॉ.ओ.पी.व्यास
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||
जो गिरि की कन्दराओं में रहते | ध्यान परम ज्योति का करते ||
जिनकी गोद में बैठ पक्षी गण | पीते उनके आनन्द अश्रु कण ||
किन्तु आयु यह पूर्ण हमारी | भवन मनोरथ बनाती हारी ||
वहां मनोरथ वापी तट पर | आयु क्षीण होती है घट कर ||
उसी उद्यान मनोरथ विचरें , करते रहते भोग विलास |
उसी कल्पना लोक विचरते , होते प्रेम क्रीड़ा के दास ||
क्यों नहीं करते भक्ति अनन्य | हो जाते फिर हम सब धन्य ||
पर जो करते भक्ति अनन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||
वे हैं धन्य , वे हैं धन्य | कौन भला उन जैंसा अन्य ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ. ओ.पी.व्यास
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