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19 मार्च 2018

[ 405 ] ...श्लोक क्र.[ 89 ]..ग्रस्तं न किम केनवा [.आक्रान्त किया किसने ना किसे | ]..जगत है आक्रान्त सारा | एक ब्रह्म ही है शांत धारा ||..डॉ.ओ.पी.व्यास

[ 405 ] ...
श्लोक क्र. [ 89 ] .
.ग्रस्तं न किम केनवा ..
[आक्रान्त किया किसने ना किसे ]
जगत है आक्रान्त सारा | ब्रह्म ही एक शान्त  धारा ||
तुम ब्रह्म  का  चिन्तन  करो | तुम ब्रह्म आराधन करो ||
इस दुनिया में है ,कौन निडर | किसी  को तो ,किसी से , है ही डर ||
जो जन्मे ,सोचे , ना जाए मर | बुढापे से कंपे यौवन थर थर ||
आक्रान्त मृत्यु से , हुआ जन्म |  बुढापे से आक्रान्त हुआ यौवन ||
यौवन विद्युत् समान चंचल | आ रहा बुढ़ापा है प्रति पल ||
संतोष आकांक्षा से काँपे | हर समय चाह को ही टांपे ||
वह  परम सुन्दरी का  विलास  | गया छीन, शान्ति ,सुख ,हैं उदास ||
आक्रान्त सर्प से, वन का वास |  राजा को है , दुर्जन की फांस ||
आक्रान्त किया, किसने ना किसे | पर ब्रह्म आराधन मिला जिसे ||
छू तक ना गया, भय कभी उसे  | रक्षक  है ब्रह्म  , वह पास बसे ||
वह ब्रह्म ,सदा ,उसका प्यारा |  दिन रात उसी का सहारा ||
जगत है आक्रान्त सारा | ब्रह्म ही एक शांत धारा ||
तुम ब्रह्म का चिन्तन करो | तुम ब्रह्म आराधन करो ||
श्लोक क्र.  [89 ]
 भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद