[ 406 ] ..
.श्लोक क्र. [ 90 ]
इस विधाता के रचे संसार में |
हर वस्तु अस्थिर है ,वह रहती मार में ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
श्लोक क्र. [ 90 ] ..
हिंदी काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
इस विधाता के रचे संसार में |
हर वस्तु अस्थिर है , वह रहती मार में ||
कौन सी है वस्तु जो स्थिर बनाई |\
विधाता ने हर वस्तु ही अस्थिर बनाई ||
हैं अनेकों मानसिक चिन्ता |
सैंकड़ों हैं रोग व्याधियां ||
स्वास्थ्य को है रोगों ने घेरा
| हर ओर दिखता चिन्ता का डेरा ||
जहां धन की अधिकता है |
वहीं आफत की प्रचुरता है ||
सदा से चली आती , रीति है यह ही |
जो जन्मता है मरा वह ही ||
हर जीव को ही देखता लाचार मैं |
देखता कुछ भी नहीं आधार मैं ||
इस विधाता के रचे संसार में |
हर वस्तु अस्थिर है, वह रहती मार में ||
श्लोक क्र. [ 90] .
.भर्तृहरि वैराग्य शतक .
.हिंदी काव्य भावानुवाद ...
डॉ.ओ.पी.व्यास
डॉ.ओ.पी.व्यास , श्रीमती कृष्णा व्यास
श्रीमान रण छोड़ दास जी व्यास काकाजी साहब
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.श्लोक क्र. [ 90 ]
इस विधाता के रचे संसार में |
हर वस्तु अस्थिर है ,वह रहती मार में ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
श्लोक क्र. [ 90 ] ..
हिंदी काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
इस विधाता के रचे संसार में |
हर वस्तु अस्थिर है , वह रहती मार में ||
कौन सी है वस्तु जो स्थिर बनाई |\
विधाता ने हर वस्तु ही अस्थिर बनाई ||
हैं अनेकों मानसिक चिन्ता |
सैंकड़ों हैं रोग व्याधियां ||
स्वास्थ्य को है रोगों ने घेरा
| हर ओर दिखता चिन्ता का डेरा ||
जहां धन की अधिकता है |
वहीं आफत की प्रचुरता है ||
सदा से चली आती , रीति है यह ही |
जो जन्मता है मरा वह ही ||
हर जीव को ही देखता लाचार मैं |
देखता कुछ भी नहीं आधार मैं ||
इस विधाता के रचे संसार में |
हर वस्तु अस्थिर है, वह रहती मार में ||
श्लोक क्र. [ 90] .
.भर्तृहरि वैराग्य शतक .
.हिंदी काव्य भावानुवाद ...
डॉ.ओ.पी.व्यास
डॉ.ओ.पी.व्यास , श्रीमती कृष्णा व्यास
श्रीमान रण छोड़ दास जी व्यास काकाजी साहब
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