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17 मार्च 2018

[ 402 ] ..श्लोक क्र. [ 86 ] ..अति जर्जर , शत शत ,खण्डों में जिनकी है कौपीन हुई | कन्था की भी वही दशा है , वह भी अतिशय क्षीण हुई ||..डॉ.ओ.पी.व्यास

[ 402 ]..श्लोक क्र . [ 86 ] ..अति जर्जर , शत शत खण्डों में जिनकी है कौपीन हुई | कन्था की भी वही दशा है , वह भी अतिशय  क्षीण हुई ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक , हिंदी काव्य भावानुवाद ..
डॉ. ओ.पी.व्यास
अति जर्जर , शत शत खण्डों में जिनकी है कौपीन हुई |
कन्था की भी वही दशा है , वह भी अतिशय क्षीण हुई ||
फिर भी वे निश्चिन्त , और  प्रभु भक्ति में ही मग्न रहें |
सुख , संतोष , शान्ति पूर्वक , गृहंण वे भिक्षा अन्न करें ||
हो  श्मशान ,या बीहड़ वन हो , चाहे जहां भी सो जाते |
मित्र अमित्र कोई नहीं जग में , भेद अभेद नहीं पाते |||
काम , क्रोध , मद , लोभ , मोह सभी विकारों से जो मुक्त |
जहां मिले एकांत  वहीं  पर शीघ्र समाधि से हों युक्त ||
श्रध्दा  सहित एक चित से ही, शिव जी का चिन्तन करते |
मस्त रहें वे शिव भक्ति में , कभी नहीं कुछ भी कहते ||
                                                               श्लोक क्र. [ 86 ]
                                                              भर्तृहरि वैराग्य शतक
                                                             हिंदी काव्य भावानुवाद
                                                                डॉ.ओ.पी.व्यास

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद