[ 401 ] ..श्लोक क्र. [ 85 ] ..
रे कन्दर्प [ काम देव ] ,कष्ट दे , कर , को , बारम्बार करे टंकार |
री कोकिल , बड़ ,बड़ को व्यर्थ कर ,कूह कूह करे बारम्बार ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक , हिंदी काव्य भावानुवाद , डॉ.ओ.पी.व्यास
रे कन्दर्प [ काम देव ] ,कष्ट दे , कर को , बारम्बार करे टंकार |
री कोकिल , बड़ बड़ को व्यर्थ कर , कूह कूह करे बारम्बार ||
री सुन्दरी , स्निग्ध , विदग्ध , चंचल कटाक्ष, के चला नयन |
मुझको सम्मोहित करने का , क्यों करती तू व्यर्थ प्रयत्न ||
मेरा चित्त हुआ स्थिर ,शिव चरण ध्यान में ,हुआ निमग्न |
रात , दिवस ,अब तो चन्द्र शेखर ,के ही दिखते मुझे चरण ||
श्लोक कर. [ 85 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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रे कन्दर्प [ काम देव ] ,कष्ट दे , कर , को , बारम्बार करे टंकार |
री कोकिल , बड़ ,बड़ को व्यर्थ कर ,कूह कूह करे बारम्बार ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक , हिंदी काव्य भावानुवाद , डॉ.ओ.पी.व्यास
रे कन्दर्प [ काम देव ] ,कष्ट दे , कर को , बारम्बार करे टंकार |
री कोकिल , बड़ बड़ को व्यर्थ कर , कूह कूह करे बारम्बार ||
री सुन्दरी , स्निग्ध , विदग्ध , चंचल कटाक्ष, के चला नयन |
मुझको सम्मोहित करने का , क्यों करती तू व्यर्थ प्रयत्न ||
मेरा चित्त हुआ स्थिर ,शिव चरण ध्यान में ,हुआ निमग्न |
रात , दिवस ,अब तो चन्द्र शेखर ,के ही दिखते मुझे चरण ||
श्लोक कर. [ 85 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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