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28 अक्तू॰ 2019

धन्वन्तरि प्रगटन उद्देश्य -.डॉ. ओ .पी .व्यास

 जब सन्मति से, सुर और असुर सभी ने, दधि की भांति, मथा सागर।
तब विष्णु रूप जग पालक भगवन धन्वन्तरि बन, प्रगट हुए ले अमृत गागर।।
सब की थी अभिलाषा जग में, अमर होंय सब सुर नागर।
रोग जाल जंजाल मुक्त जग होय, आयु संपूर्ण पाय यह जन सागर।।
धर्म, अर्थ और काम, मोक्ष, पुरुषार्थ चतुष्टय, प्राप्त करें सब हर प्राणी, जिसको आगर।।
जिससे लक्ष्य हो प्राप्त मानव जन्म का, क्यों जन्म लिया सबने आकर।।
सभी धन्य हो जांय जगतं में, सुंदर मानव तन पाकर।।
पूर्ण होय उद्देश्य जगत का, सो अमृत कलश दिया लाकर ।।
यह छोटी स बात, समझ लें, हो सद्बुद्धि सभी के पास ।
वरना एटम से विनाश को, नहीं कोई रोकेगा" व्यास"।।
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद