[ 392 ]
श्लोक क्र. [ 76 ] .
.हो दमन विरोधी के मुख का |
नहीं सीखी मैंने वह विद्या ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
हो दमन ,विरोधी के मुख का |
नहीं सीखी, मैंने वह विद्या ||
करना विदीर्ण, हाथी का पृष्ठ |
तलवार नोंक, ना थी मेरा इष्ट ||
फैलाना स्वर्ग तक ,यश अपना |
कभी नहीं रहा ,मेरा सपना ||
ना चन्द्र उदय के किसी काल |
कोमल कान्ता के अधर लाल ||
का ही मैंने रस पान किया |
ना शिव का मैंने ध्यान किया ||
सूने घर जलते दीपक सा |
तारुण्य मेरा सब व्यर्थ गया ||
श्लोक क्र. [ 76 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
दि. 9 3 . 1997 रविवार
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श्लोक क्र. [ 76 ] .
.हो दमन विरोधी के मुख का |
नहीं सीखी मैंने वह विद्या ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
हो दमन ,विरोधी के मुख का |
नहीं सीखी, मैंने वह विद्या ||
करना विदीर्ण, हाथी का पृष्ठ |
तलवार नोंक, ना थी मेरा इष्ट ||
फैलाना स्वर्ग तक ,यश अपना |
कभी नहीं रहा ,मेरा सपना ||
ना चन्द्र उदय के किसी काल |
कोमल कान्ता के अधर लाल ||
का ही मैंने रस पान किया |
ना शिव का मैंने ध्यान किया ||
सूने घर जलते दीपक सा |
तारुण्य मेरा सब व्यर्थ गया ||
श्लोक क्र. [ 76 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
दि. 9 3 . 1997 रविवार
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