मूल संस्कृत श्लोक
" कस्तूरी तिलकं ललाटपटले वक्ष स्थले कोस्तूभं || नासाग्रे वर मोक्तिकं करतले वेणुम करे कंकणं | सर्वांगे हरि चन्दनम सुललितं कंठे च मुक्तावली| गोपस्त्रे परिवेश्ठीतं विजयते श्री गोपाल चूड़ा मणिम ||
हिंदी काव्यानुवाद
तिलक कस्तूरी का शोभित भाल पर |
कोटि मन्मथ [कामदेव] निछावर गोपाल पर ||
वक्ष में जिन के है ,कोस्तुभ की मणी |
जगत में है कोंन बढ उन से धनी ||
श्रेष्ठ मुक्ता नासिका के अग्र पर |
प्रभावित है , रूप राशि समग्र पर ||
कर तल में है ,वेणु ,करों में कंगन हैं |
हरि के ललित सर्व अंगों पर ,चन्दन है ||
मुक्ता मॉल कंठ में ,गोपी घेरे हैं |
चूड़ा मणि गोपाल ,विजयते मेरे हैं ||
काव्यानुवादक डॉ. ओ .पी . व्यास नई सड़क गुना म.प्र भारत
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