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2 मार्च 2012

हिंदी काव्यानुवाद-संस्कृत श्लोक-कस्तूरी तिलकं --|

मूल संस्कृत श्लोक
कस्तूरी तिलकं ललाटपटले वक्ष स्थले कोस्तूभं ||   नासाग्रे वर मोक्तिकं करतले वेणुम करे  कंकणं  | सर्वांगे हरि चन्दनम सुललितं कंठे च मुक्तावलीगोपस्त्रे परिवेश्ठीतं  विजयते श्री गोपाल चूड़ा मणिम ||  


हिंदी काव्यानुवाद 

तिलक कस्तूरी का शोभित भाल पर |

कोटि मन्मथ [कामदेव] निछावर गोपाल पर ||

वक्ष में जिन के है ,कोस्तुभ की मणी |

जगत में है कोंन बढ उन से धनी ||

श्रेष्ठ मुक्ता नासिका के अग्र पर |

प्रभावित है , रूप राशि समग्र पर ||

कर तल में है ,वेणु ,करों में कंगन हैं |

हरि के ललित सर्व अंगों पर ,चन्दन है ||
मुक्ता मॉल कंठ में ,गोपी घेरे हैं |

चूड़ा मणि गोपाल ,विजयते मेरे हैं || 
काव्यानुवादक डॉ. ओ .पी . व्यास नई सड़क गुना म.प्र भारत 

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद