हिंदी कविता
[गीतिका]
-- ब्राह्मण ! --
था कभी यह विश्व वन्दित ब्राह्मण;
हो रहा क्यों आज निन्दित ब्राह्मण|
कंठ में थीं वास करतीं शारदा';
वेद शास्त्रों का था ,पंडित ब्राह्मण|
वेद शास्त्रों का था ,पंडित ब्राह्मण|
जिसकी प्रतिभा थी गयी, पूजी सदा;
आज वह प्रतिमा है, खंडित ब्राह्मण|
एक कर में शस्त्र, दूजे शास्त्र ले;
*परुष ने था, किया मंडित ब्राह्मण|
जब पुरस्कृत हो रहीं सब जातियां,
क्यों तिरस्कृत,और दण्डित ब्राह्मण|
डॉ. ओ.पी. व्यास
[*श्री भगवान परशुराम जी ]
[*श्री भगवान परशुराम जी ]